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Kisan Andolan-निहत्थे किसानों पर पुलिस ने बरसाई थी गोलियां  700 से ज्यादा किसानों की हुई थी मौत

किसान आंदोलन का पुराना इतिहास,

निहत्थे किसानों पर पुलिस ने बरसाई थी गोलियां  700 से ज्यादा किसानों की हुई थी मौत ,

सांकेतिक फोटू
रायबरेली(ATAL HIND )

 

किसने पहली बार किसानों के हक में उठाई थी आवाज? महात्‍मा गांधी से भी भिड़ गए थे
इस सबके बीच जानते हैं कि देश में पहला किसान आंदोलन (Kisan Andolan)किसने छेड़ा था? इस आंदोलन में किसान पीछे हटे या सरकार को झुकना पड़ा?भारत में ‘किसान आंदोलन का जनक’ कहलाने वाले दंडी स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती (Swami Sahajanand Saraswati)स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे. लेखक डॉ. पीएन सिंह स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती के जीवन और उनके कामों पर लिखी अपनी किताब ‘गाजीपुर का गौरव बिंदु राजनीति में क्रांतिकारी सन्यासी स्वामी सहजानंद’ में कहते हैं कि 5 दिसंबर 1920 को पटना में मजहर उल हक के घर पर महात्‍मा गांधी से उनकी मुलाकात हुई. फिर उनके विचारों से प्रभावित होकर राष्‍ट्रीय मुक्ति आंदोलन में जुट गए

 

Old history of farmers movement, देश में किसान आंदोलन (Kisan Aandolan)का इतिहास बहुत पुराना है. आजादी से पहले ही किसानों ने अपने हक के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया था. ऐसे ही एक आंदोलन के दौरान पुलिस ने किसानों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी. घटना में सैकड़ों किसानों की मौत हुई. वहीं, सैकड़ों किसान जख्मी हुए थे. इतिहास में इस घटना को मुंशीगंज गोलीकांड के नाम से दर्ज किया गया. इसे ब्रिटिश राज में दूसरा जलियांवाला बाग कांड भी कहा जाता है. उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में मुंशीगंज में आंदोलन कर रहे किसानों पर 7 जनवरी 1921 को गोलियां बरसाई गईं थीं. दरअसल, किसान जमींदारी व्यवस्था से परेशान हो गए थे और इसे खत्म करने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे.
निहत्थे किसानों पर पुलिस ने बरसाई थी गोलियां
रायबरेली का मुंशीगंज गोलीकांड अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ किसानों के बलिदान और त्याग की महागाथा है. ब्रिटिश शासन (British Raj)ने सैकड़ों निहत्थे और बेकसूर किसानों पर पुलिस बल से गोलियों की बौछार करवा दी थी(Police had fired bullets on unarmed farmers). बताया जाता है कि इस गोलीकांड में किसानों का इतना खून बहा था कि पास ही बहने वाली सई नदी की धारा लाल हो गई थी. बरसती हुई गोलियों की परवाह किए बिना किसान आगे बढ़ते रहे और अपने हक के लिए प्राणों का बलिदान करते गए. बता दें कि अंग्रेजों के शासनकाल में रायबरेली में जमींदारों और कोटेदारों का बोलबाला था. ये किसानों को जमीन मुहैया कराकर उनसे अंग्रेजों के लिए टैक्स वसूलते थे.
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700 से ज्यादा किसानों की हुई थी मौत
अनुमान लगाया जाता है कि ब्रिटिश शासन ने पहले ही गोलीकांड की योजना तैयार कर ली थी. लिहाजा, जवाहरलाल नेहरू को कलेक्ट्रेट परिसर में ही नजरबंद कर लिया गया था. अंग्रेज हुक्मरानों को डर था कि अगर जवाहर लाल नेहरू को गोली लग गई तो मामला बहुत गर्म हो जाएगा. फिर प्रशासन के कहने पर जनसभा में जुटे सभी निहत्थे किसानों पर अंग्रेजों ने गोलियां बरसा दीं. रिकॉर्ड्स के मुताबिक, मुंशीगंज गोलीकांड में 700 से ज्यादा किसान मारे गए थे. वहीं, 1500 से ज्यादा किसान घायल हो गए थे. (More than 700 farmers had died,)चूंकि पंडित नेहरू नजरबंदी के कारण इस जनसभा में शामिल ही नहीं हो पाए, इसलिए बाल-बाल बच गए.
नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जुटने लगी भीड़
किसान उस समय के तालुकदार के अत्याचारों से परेशान होकर 5 जनवरी 1921 को अमोल शर्मा और बाबा जानकीदास के नेतृत्व में जनसभा कर रहे थे. जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ आयोजित इस जनसभा में आसपास के कई गांव के किसान पहुंचे थे. जनसभा को असफल करने के लिए तालुकदार ने तत्कालीन डिप्‍टी कमिश्‍नर एजी शेरिफ के साथ मिलकर अमोल शर्मा और बाबा जानकीदास को गिरफ्तार करवा कर लखनऊ जेल भिजवा दिया था. अगले दिन यह खबर फैल गई कि दोनों नेताओं की लखनऊ जेल प्रशासन ने हत्या करा दी है.
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किसान आंदोलन का पुराना इतिहास,पंडित नेहरू को पुलिस ने कर दिया नजरबंद
पंडित नेहरू को पुलिस ने कर दिया नजरबंद
Police put Pandit Nehru under house arrest रायबरेली में 7 जनवरी 1921 को एक तरफ सई नदी के छोर पर अपने नेताओं के समर्थन में किसानों का विशाल जनसमूह जुटने लगा. किसानों की भारी भीड़ और विरोध प्रदर्शन को देखते हुए नदी के किनारे बड़ी संख्या में पुलिस के जवान तैनात कर दिए गए थे. हालात को देखते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru)ने भी मुंशीगंज की तरफ रुख किया. हालांकि, उन्हें मुंशीगंज पहुंचने से पहले ही कलेक्ट्रेट परिसर के नजदीक रोककर नजरबंद कर दिया गया. उन्हें किसानों के पास नदी किनारे पहुंचने ही नहीं दिया गया.
जमींदारी व्यवस्था खत्म करने की वजह बना
मुंशीगंज गोलीकांड पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग कांड के बाद हुआ था. इसे गुलाम भारत का दूसरा सबसे बड़ा हत्याकांड माना जाता था. मुंशीगंज गोलीकांड के बाद भी किसानों के हौसले नहीं टूटे. इस आंदोलन में देशभर के किसानों की आवाज जुड़ने लगी. अंग्रेजों के शासनकाल में तो जमींदारी व्यवस्था खत्म नहीं हो पाई. लेकिन, आजादी के बाद जब पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने जमींदारी उन्मूलन को अपने एजेंडा में सबसे ऊपर रखा. उत्तर प्रदेश में रायबरेली के मुंशीगंज में किसानों का ये आंदोलन ही बाद में जमींदारी व्यवस्था को खत्म करने का कारण बना.
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