हरियाणा शिक्षा विभाग की सांठगांठ, 5 साल से चल रहा खेल
– गठजोड़ ऐसा, कि एसीएस तक को बदलवा चुके
चंडीगढ़/9 जुलाई/अटल हिन्द ब्यूरो
प्रदेश सरकार की नाक तले शिक्षा विभाग में करीब 5 साल से सरकारी खजाने को हजम करने का खेल चल रहा है। इस खेल में विभाग में तैनात कुछ अधिकारी सीधे तौर पर शामिल हैं, जिनकी एक कंपनी से सांठगांठ है। मामला सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम (Smart classrooms in government schools)स्थापित करने का है, जिसका किसी नामी-गिरामी कंपनी की बजाए वे हर बार एक कंपनी को ही कार्य अलॉट कर रहे हैं, जो संदेह के घेरे में है। टेंडर की शर्तें ऐसी बनाई जाती हैं, जिन पर देश-दुनिया की नामी-गिरामी कंपनी फिट नहीं बैठती। इस पूरे खेल में अभी तक शिक्षा विभाग की 600 करोड़ रुपये से अधिक राशि खर्च कराई जा चुकी है।Haryana Education Department’s collusion
अजय दीप लाठर, लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक के अनुसार कागजात का अध्ययन करने पर पता चलता है कि शिक्षा विभाग की एकेडमिक सैल में तैनात कुछ अधिकारी/कर्मचारी एक गैंग की तरह कार्य (विस्तृत जानकारी आगामी किस्तों में) कर रहे हैं, जिनका मकसद स्मार्ट क्लासरूम स्थापित कराने की आड़ में ग्लोबस इंफोकॉम कंपनी को फायदा पहुंचा कर अपना उल्लू सीधा करना है। इनका आपसी गठजोड़ इतना मजबूत है कि एक बार तो ये फंसने से बचने के लिए एक एसीएस तक का तबादला भी करवा चुके हैं। यह गैंग ही ग्लोबस इंफोकॉम कंपनी के लिए जरूरी कागजी कार्य करवाता है और फिर डायरेक्टर सप्लाई एंड डिस्पोजल के यहां से मंजूरी दिला देता है। इस पूरे कार्य में खुद को लॉयजनर बताने वाले तरूण खुल्लर उर्फ बॉबी की भूमिका से भी नकारा नहीं जा सकता।
ऐसे मिलता है ग्लोबस इंफोकॉम को काम
ग्लोबस इंफोकॉम की ओर से अशीष धाम अपने टेंडर के साथ हर बार दो डमी कंपनी हूगो टेक्नो व ऑस्कर्स प्रो से भी अप्लाई करवाते हैं, लेकिन पूर्व निर्धारित प्लान के तहत हर बार एल-1 ग्लोबस इंफोकॉम ही मिलती है और उसे काम अलॉट हो जाता है। जबकि, सही मायनों में हूगो टेक्नो व ऑस्कर्स प्रो तो मार्केट में कोई ब्रांड ही नहीं हैं। इन्हें आज तक हार्डवेयर से संबंधित न तो कोई सरकारी कार्य अलॉट हुआ है, और न ही निजी क्षेत्र से कोई ढंग का ऑर्डर प्राप्त हुआ है। हूगो टेक्नो की वेबसाइट पर न तो इनका ऑफिस एड्रेस ही कंपलीट है और न ही इनकी फैक्टरी या मैन्युफेक्चरिंग यूनिट का कोई जिक्र है। ऑस्कर्स प्रो के मामले में हालात इससे भी बदतर हैं। वेबसाइट पर इस कंपनी का यूके का पता दिया गया है, जबकि भारत में किसी तरह का ऑफिस एड्रेस बताया ही नहीं गया है। ऐसे में ग्लोबस इंफोकॉम को सिर्फ और सिर्फ मिलीभगत व आपसी सांठगांठ से ही शिक्षा विभाग में कार्य अलॉट होता आ रहा है। इस कंपनी के अभी तक की टेंडर प्रक्रिया व कार्य की जांच होने पर बड़ा घोटाला सामने आ सकता है, जिसमें एकेडमिक सैल में तैनात विभागीय अधिकारियों की बड़े पैमाने पर संलिप्तता उजागर हो सकती है। वैसे भी ग्लोबस इंफोकॉम को हरियाणा के अलावा किसी भी अन्य राज्य में स्मार्ट क्लासरूम का कोई कार्य अलॉट ही नहीं किया गया है।
गुजरात, यूपी, उड़ीसा, असम में बड़ी कंपनियों को जिम्मा
स्मार्ट क्लासरूम (Smart Classroom)के नाम पर हरियाणा शिक्षा विभाग (Haryana Education Department)में चल रहे खेल को इस बात से समझा जा सकता है कि गुजरात, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा व असम ऐसे राज्य हैं, जहां हार्डवेयर के क्षेत्र में बड़ा नाम रखने वाली कंपनियों को कार्य अलॉट किया गया। अकेले उत्तरप्रदेश में तीन साल के अंदर 40 हजार से अधिक स्मार्ट क्लासरूम स्थापित किए गए हैं, जिसका कार्य एलजी, बैंक्यू (Benq), विवसॉनिक को सौंपा गया है। उड़ीसा में 11000 के आसपास स्मार्ट क्लासरूम बन हो चुके हैं, जिसे पेनासॉनिक ने तैयार किया है। असम में 6000 स्मार्ट क्लासरूम तैयार हो चुके हैं, जिन्हें एलजी ने बनाया है। जबकि, गुजरात में 40 हजार स्मार्ट क्लासरूम बनाए गए हैं, जिसे एसर (Acer) ने बनाया है। ऐसे में इस प्रकरण की जांच बेहद जरूरी है, अन्यथा सरकारी धन की कंपनी व विभागीय अधिकारियों के बीच चल रही बंदरबांट का खेल यूं ही चलता रहेगा।