मुनीर का तख्तापलट अभियान: क्या पाकिस्तान इतिहास दोहराएगा?
पाकिस्तान की धरती पर सियासी तूफान की आहट एक बार फिर गूंज रही है, मानो इतिहास का चक्र अपनी अनवरत यात्रा में फिर उसी भयावह मोड़ पर लौट आया हो। इस्लामाबाद के सत्ता के गलियारों में साजिशों की काली छाया मंडरा रही है, जहां सत्ता का ताज तलवारों की धार पर नाच रहा है। सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर (Army Chief Field Marshal Asim Munir)और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी (President Asif Ali Zardari)के बीच गहराता तनाव न केवल पाकिस्तान को, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया को एक नए संकट की कगार पर ले आया है। यह वह क्षण है जब भारत, अपने पड़ोसी मुल्क की इस उथल-पुथल को नजदीक से देख रहा है, अपनी रणनीति को और धार दे रहा है, क्योंकि इस खेल का हर दांव भारत की सुरक्षा, स्थिरता और क्षेत्रीय प्रभुत्व से जुड़ा है।
पाकिस्तान में सैन्य तख्तापलट कोई नई बात नहीं है। 1958 में अयूब खान ने सत्ता हथियाई, 1977 में जिया-उल-हक ने ‘ऑपरेशन फेयर प्ले’ के जरिए जुल्फिकार अली भुट्टो को अपदस्थ किया, और 1999 में परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल कर शासन की बागडोर संभाली। आज, जुलाई 2025 में, आसिम मुनीर के नेतृत्व में एक और तख्तापलट की सुगबुगाहट ने वैश्विक मंच पर हलचल मचा दी है। पाकिस्तानी समाचार पत्रों और स्वतंत्र विश्लेषकों के अनुसार, मुनीर न केवल जरदारी को हटाने की योजना बना रहे हैं, बल्कि संसदीय ढांचे को ध्वस्त कर राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। यह कदम पाकिस्तान को सैन्य तानाशाही की गहरी खाई में धकेल सकता है, जिसके भारत पर गहरे और दीर्घकालिक प्रभाव होंगे।
मुनीर की महत्वाकांक्षा को हाल के घटनाक्रमों ने और बल दिया है। मई 2025 में, शहबाज शरीफ सरकार ने उन्हें फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया, जो अयूब खान के बाद दूसरा ऐसा उदाहरण है। यह पदोन्नति तब हुई जब भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने पाकिस्तानी सेना को करारी शिकस्त दी, जिसमें पीओके और पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया, और मसूद अजहर का परिवार मारा गया। इसके बावजूद, मुनीर को आजीवन कानूनी संरक्षण और विशेषाधिकार प्राप्त हुए, जिसने उनकी ताकत को अभूतपूर्व स्तर पर पहुंचा दिया। उनकी हाल की अमेरिका, चीन और सऊदी अरब की यात्राएं, विशेष रूप से जून 2025 में व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप के साथ उनकी गुप्त मुलाकात, तख्तापलट की अटकलों को और पुख्ता करती हैं।
इस सियासी तूफान में जरदारी और उनके बेटे बिलावल भुट्टो की भूमिका भी उलझन भरी है। मार्च 2024 में दूसरी बार राष्ट्रपति बने जरदारी, सेना के फैसलों में बार-बार हस्तक्षेप कर रहे हैं, जो मुनीर को नागवार गुजर रहा है। दूसरी ओर, बिलावल भुट्टो ने एक साक्षात्कार में हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को भारत को सौंपने की बात कहकर तहलका मचा दिया। इस बयान ने न केवल जिहादी समूहों को भड़काया, बल्कि सेना को भी नाराज किया, जो इन समूहों को अपने रणनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल करती रही है। बिलावल का यह कदम शायद अपने पिता के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश था, लेकिन इसने उनके परिवार को और संकट में डाल दिया। खबरें हैं कि उनके परिवार के कुछ सदस्य कनाडा भाग गए हैं, जो भारत के कड़े रुख और ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में डर के माहौल को दर्शाता है।
भारत के लिए इस स्थिति के कई आयाम हैं। पहला, अगर मुनीर सत्ता हथियाते हैं, तो पाकिस्तान में सैन्य शासन का और सख्त होना भारत के लिए खतरे की घंटी है। मुनीर, जो 2019 के पुलवामा हमले के समय आईएसआई प्रमुख थे, भारत के खिलाफ ‘हजार जख्मों से खून बहाने’ की नीति में यकीन रखते हैं। उनके शासन में सीमा पर आतंकी गतिविधियां बढ़ सकती हैं, जैसा कि अप्रैल 2025 के पहलगाम हमले में देखा गया, जिसमें 26 लोग मारे गए। भारत ने इसका जवाब ऑपरेशन सिंदूर से दिया, जिसमें 12 आतंकी ठिकाने नष्ट किए गए और 150 से अधिक आतंकी मारे गए। लेकिन मुनीर के सत्ता में आने से ऐसी घटनाएं और तेज हो सकती हैं। उनकी हाल की टिप्पणियां, जिसमें उन्होंने 1971 की हार का बदला लेने और भारत को तोड़ने की बात कही, इस खतरे को और स्पष्ट करती हैं।
दूसरा, मुनीर की अमेरिका से बढ़ती नजदीकी भारत के लिए चिंता का विषय है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान को बिटकॉइन खनन और अन्य व्यावसायिक हितों के लिए एक रणनीतिक केंद्र बनाना चाहता है, जिसके लिए जरदारी जैसे चीन-समर्थक नेताओं को हटाना जरूरी है। जून 2025 में ट्रंप और मुनीर की मुलाकात, जिसमें शहबाज शरीफ को दरकिनार किया गया, इस बात का संकेत देती है। भारत को न केवल पाकिस्तान, बल्कि अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव से भी जूझना होगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में कहा कि भारत आतंकवाद के खिलाफ ‘गहराई में जाकर’ कार्रवाई करेगा, और मुनीर का सत्ता में आना इस नीति को और मजबूत करने की जरूरत को रेखांकित करता है।
तीसरा, पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता भारत के लिए अवसर भी ला सकती है। जेल में बंद इमरान खान अभी भी पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। उनकी पार्टी, पीटीआई, ने 2024 के चुनाव में 93 सीटें जीतीं, लेकिन सेना के हस्तक्षेप से सत्ता से बाहर रखी गई। तख्तापलट की स्थिति में, जनता का गुस्सा, जैसा कि #ReleaseKhanForPakistan जैसे सोशल मीडिया अभियानों में दिखा, सड़कों पर उतर सकता है। यह अस्थिरता पाकिस्तान को कमजोर कर सकती है, जिससे भारत को कूटनीतिक और रणनीतिक लाभ मिल सकता है। भारत ने हाल ही में सिंधु जल संधि को निलंबित करने और ऑपरेशन सिंदूर जैसे कड़े कदमों से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया है।
हालांकि, भारत को सावधानी बरतनी होगी। इतिहास गवाह है कि तख्तापलट के बाद नया शासक अपनी वैधता साबित करने के लिए भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाता है। जिया-उल-हक ने 1977 में सत्ता हथियाने के बाद कश्मीर में अस्थिरता बढ़ाई, और मुशर्रफ ने 1999 में करगिल युद्ध छेड़ा। मुनीर, जिनका भारत-विरोधी रुख उनकी आईएसआई पृष्ठभूमि से स्पष्ट है, ऐसा ही कुछ कर सकते हैं। भारत को जम्मू-कश्मीर में सतर्कता बढ़ानी होगी और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के आतंकवाद-प्रायोजित रुख को और उजागर करना होगा।
पाकिस्तान का यह सियासी संकट यह साबित करता है कि वहां लोकतंत्र केवल एक दिखावा है। सेना की लोहे की पकड़ और विदेशी ताकतों का हस्तक्षेप वहां की जनता को असली आजादी से वंचित रखता है। भारत के लिए यह समय है कि वह अपनी रक्षा और कूटनीति को और मजबूत करे। मुनीर का संभावित तख्तापलट न केवल पाकिस्तान की अस्थिरता को बढ़ाएगा, बल्कि दक्षिण एशिया में शांति के लिए खतरा पैदा करेगा। भारत को इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा, ताकि वह अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके और क्षेत्रीय स्थिरता का नेतृत्व कर सके।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत