मौत के परजीवी पर वार: भारत की वैक्सीन क्रांति का नया अध्याय
स्वास्थ्य में स्वराज: भारत की मलेरिया वैक्सीन एडफाल्सीवैक्स से नई सुबह
भारत ने मलेरिया के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में एक ऐसी क्रांति रची है, जो विज्ञान की सीमाओं को पार कर मानवता के लिए आशा की नई मशाल बन गई है। एडफाल्सीवैक्स(AdFalciVax), भारत का प्रथम स्वदेशी मलेरिया टीका – नवाचार, आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व का प्रतीक है। यह टीका न केवल मलेरिया के संक्रमण को रोकता है, बल्कि इसके प्रसार को प्रभावी रूप से नियंत्रित कर भारत को मलेरिया उन्मूलन के मार्ग पर एक ऐतिहासिक छलांग लगाने में सक्षम बनाता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), भुवनेश्वर के क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र (आरएमआरसीई), राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान (एनआईएमआर) और राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान (एनआईआई) के वैज्ञानिकों की अथक मेहनत और समर्पण ने इस स्वप्न को साकार किया है। यह उपलब्धि भारत को वैश्विक स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी बनाती है, जो अब न केवल चुनौतियों का सामना करता है, बल्कि विश्व के लिए समाधान प्रस्तुत करने वाला सशक्त नेतृत्वकर्ता बनकर उभरा है।
मलेरिया, जिसे कभी ‘मौत का परजीवी’ कहा जाता था, सदियों से मानवता पर कहर बरपाता रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 2023 के आंकड़ों के अनुसार, विश्व में मलेरिया के 26 करोड़ मामले सामने आए, जिनमें 6 लाख से अधिक लोग इस रोग के शिकार होकर असमय काल के गाल में समा गए। दक्षिण-पूर्व एशिया में इन मामलों का 46% हिस्सा था, जिसमें भारत में प्रतिवर्ष 1.2 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं और 29,000 से अधिक की मृत्यु हो जाती है। इस भयावह स्थिति में ‘एडफाल्सीवैक्स’ एक ऐसी ज्योति है, जो भारत और विश्व को मलेरिया-मुक्त भविष्य की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। यह टीका विशेष रूप से प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम परजीवी को निशाना बनाता है, जो मलेरिया के सबसे घातक रूपों का कारण है और वैश्विक स्तर पर 90% से अधिक मामलों के लिए जिम्मेदार है।
‘एडफाल्सीवैक्स’ की सबसे बड़ी शक्ति इसकी दोहरी कार्यप्रणाली है, जो इसे मलेरिया के खिलाफ एक अभूतपूर्व हथियार बनाती है। यह न केवल मानव शरीर में मलेरिया परजीवी को प्रभावी ढंग से नष्ट करता है, बल्कि मच्छरों में इसके विकास को अवरुद्ध कर संचरण को 90% तक कम करता है। यह अनूठी विशेषता इसे विश्व में उपलब्ध अन्य मलेरिया टीकों आरटीएस और आर21/मैट्रिक्स-एम से कहीं अधिक प्रभावी बनाती है। जहां वैश्विक टीकों की प्रभावशीलता 33% से 67% के बीच है और उनकी कीमत ₹800 प्रति खुराक है, वहीं ‘एडफाल्सीवैक्स’ ने प्री-क्लिनिकल परीक्षणों में 85% से अधिक प्रभावशीलता प्रदर्शित की है। इसके साथ ही, एडफाल्सीवैक्स दोहरे चरण की सुरक्षा प्रदान करता है और किफायती भी है, जो इसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए अत्यंत सुलभ बनाती है। यह टीका भारत की आत्मनिर्भरता, किफायती स्वास्थ्य समाधानों और वैश्विक कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का प्रबल प्रतीक है।
इस वैक्सीन की तकनीकी नींव इसे और भी विशिष्ट बनाती है। वैज्ञानिकों ने लैक्टोकोकस लैक्टिस नामक बैक्टीरिया का उपयोग किया है, जो दही, छाछ और पनीर जैसे रोजमर्रा के खाद्य पदार्थों में पाया जाता है। यह बैक्टीरिया न केवल पूर्णतः सुरक्षित और जैविक है, बल्कि वैक्सीन के उत्पादन को लागत-प्रभावी और पर्यावरण-अनुकूल बनाता है। प्री-क्लिनिकल परीक्षणों में इस वैक्सीन ने शरीर में शक्तिशाली एंटीबॉडीज का निर्माण किया, जो मलेरिया परजीवी के खिलाफ दीर्घकालिक और मजबूत सुरक्षा प्रदान करते हैं। साथ ही, यह मच्छरों में परजीवी के प्रजनन को अवरुद्ध कर मलेरिया के प्रसार को रोकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि ‘एडफाल्सीवैक्स’ मलेरिया के जीवन चक्र को तोड़ने की अद्वितीय क्षमता रखता है, जिससे यह मलेरिया उन्मूलन के लिए एक क्रांतिकारी और निर्णायक हथियार बनकर उभरता है।
भारत की यह उपलब्धि ‘आत्मनिर्भर भारत’ के स्वप्न को साकार करने वाली एक स्वर्णिम गाथा है। अब तक मलेरिया वैक्सीन के लिए विदेशी तकनीकों और आयात पर निर्भरता भारत की राह में बाधा थी, किंतु ‘एडफाल्सीवैक्स’ ने इस बंधन को तोड़कर स्वदेशी नवाचार का नया इतिहास रचा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने निजी कंपनियों के साथ साझेदारी कर इस वैक्सीन के बड़े पैमाने पर उत्पादन और वितरण की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। अनुमान है कि 2026 के मध्य तक यह वैक्सीन भारत की 1.4 अरब जनता के लिए सुलभ होगी, और 2027 तक यह वैश्विक बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी। यह वैक्सीन न केवल भारत, बल्कि अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया के उन करोड़ों लोगों के लिए जीवनरक्षक सिद्ध होगी, जो मलेरिया के दंश से जूझ रहे हैं।
‘एडफाल्सीवैक्स’ भारत की वैक्सीन क्रांति का एक नया स्वर्णिम अध्याय है। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने कोवैक्सीन और कोविशील्ड जैसी स्वदेशी वैक्सीन्स के माध्यम से अपनी वैज्ञानिक शक्ति और दृढ़ता का लोहा मनवाया था। ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल के अंतर्गत भारत ने 100 से अधिक देशों को वैक्सीन आपूर्ति कर वैश्विक स्वास्थ्य में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को सुदृढ़ किया। अब ‘एडफाल्सीवैक्स’ के साथ भारत पुनः विश्व पटल पर यह सिद्ध कर रहा है कि वह न केवल अपनी चुनौतियों का डटकर सामना कर सकता है, बल्कि वैश्विक समस्याओं के समाधान में भी अग्रदूत बन सकता है। यह वैक्सीन उन निम्न आय वाले देशों के लिए विशेष रूप से वरदान है, जहां मलेरिया का बोझ असहनीय है और महंगी वैक्सीन्स उनकी पहुंच से परे हैं। यह उपलब्धि भारत के वैज्ञानिक संकल्प और मानवता के प्रति समर्पण का प्रबल प्रमाण है, जो विश्व को एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की ओर ले जा रही है।
भारत ने 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, और वैज्ञानिकों का दृढ़ विश्वास है कि ‘एडफाल्सीवैक्स’ इस लक्ष्य को डेंगू से भी पहले हासिल करने का मार्ग प्रशस्त करेगा। मलेरिया उन्मूलन की राह में वैक्सीन की कमी एक प्रमुख अवरोध थी, किंतु ‘एडफाल्सीवैक्स’ ने इस बाधा को पार कर भारत को एक अभूतपूर्व विजय दिलाई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस वैक्सीन के व्यापक उपयोग से भारत में मलेरिया के मामलों में 70% तक की कमी आएगी, जबकि वैश्विक स्तर पर मलेरिया से होने वाली मृत्यु दर में 50% तक की उल्लेखनीय गिरावट संभव है।
हालांकि, इस वैक्सीन के समक्ष कुछ चुनौतियां भी हैं। बड़े पैमाने पर उत्पादन और वितरण के लिए एक सुदृढ़ आपूर्ति श्रृंखला और मजबूत बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी। ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में वैक्सीन की पहुंच सुनिश्चित करना भी एक जटिल कार्य है। फिर भी, भारत की वैक्सीन वितरण प्रणाली, जिसने कोविड-19 महामारी के दौरान अपनी असाधारण दक्षता का परिचय दिया था, इस चुनौती को सरल बनाने में सक्षम है। साथ ही, सरकार और निजी क्षेत्र का सहयोग इस वैक्सीन को हर जरूरतमंद तक पहुंचाने में मील का पत्थर साबित होगा।
‘एडफाल्सीवैक्स’ महज एक वैक्सीन नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक शक्ति, नवाचार और वैश्विक जिम्मेदारी का जीवंत प्रतीक है। यह भारत के उस अटल संकल्प को मूर्त रूप देता है, जो एक स्वस्थ भारत और सशक्त विश्व के स्वप्न को साकार करने के लिए कृतसंकल्प है। यह वैक्सीन मलेरिया के विरुद्ध एक निर्णायक हथियार होने के साथ-साथ विश्व को यह संदेश देती है कि भारत अब वैश्विक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक सशक्त नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर चुका है। ‘एडफाल्सीवैक्स’ ने न केवल भारत के 1.4 अरब नागरिकों, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए एक स्वस्थ, सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की नींव रखी है। यह उपलब्धि प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का क्षण है और वैश्विक स्वास्थ्य के इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ जोड़ती है।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”