ग्लोबस से सांठगांठ के चलते 699 और स्मार्ट क्लासरूम खरीदने की तैयारी!
चंडीगढ़ /10 जुलाई /अटल हिन्द ब्यूरो
600 करोड़ रुपये से अधिक की राशि स्मार्ट क्लासरूम के नाम पर खर्च करने वाले हरियाणा शिक्षा विभाग में आपसी सांठगांठ इस कदर हावी है कि अब फिर ग्लोबस इंफोकॉम से ही 699 और स्मार्ट क्लासरूम खरीदने की तैयारी चल रही है। सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम के नाम पर ग्लोबस इंफोकॉम 600 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करने के बावजूद इससे कितने छात्रों को फायदा हुआ, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। स्मार्ट क्लासरूम में टीचर्स छात्रों को पढ़ा रहे हैं या नहीं, इसकी भी किसी तरह की ट्रेकिंग की व्यवस्था नहीं है।
अजय दीप लाठर, लेखक वरिष्ठ पत्रकार रिपोर्ट के अनुसार अब तक गड़बड़झाले को देख कर यही लगता है कि एकेडमिक सैल में मौजूद अधिकारी/कर्मचारी सिर्फ कमीशनखोरी के लिए शिक्षा विभाग के सैकड़ों करोड़ रुपये को लुटाने के बाद भी इसी कंपनी पर मेहरबान हैं।स्मार्ट क्लासरूम (Smart Classroom)स्थापित करने के लिए जो टेंडर बार-बार ग्लोबस इंफोकॉम को दिए गए, उनमें कहीं पर भी ऐसी कोई शर्त नहीं है, जिससे स्मार्ट क्लासरूम के उपयोग की डेली, साप्ताहिक, मासिक या फिर सालाना रिपोर्ट का पता चल सके। इतना खर्च करने के बाद शिक्षकों व छात्रों को फायदा हुआ या ऐसे ही सरकारी खजाना लूटा दिया गया, इस पर अभी तक प्रदेश सरकार की ओर से कोई ध्यान भी नहीं दिया गया। जबकि, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का मानना है कि शिक्षण संसाधनों, समेकित रिपोर्टिंग, प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS), उपयोग की ट्रेकिंग और समीक्षा बेहद जरूरी है। इस मॉनिटरिंग के बिना शिक्षकों व छात्रों को हो रहे लाभ या नुकसान का पता नहीं चल सकता।
शिक्षा विभाग का गैंग ग्लोबस इंफोकॉम के साथ इस हद मिला हुआ है कि आज तक उन्होंने किसी भी स्तर पर यह रिपोर्ट तक तैयार नहीं होने दी कि सैकड़ों करोड़ रुपये के भुगतान के बावजूद छात्रों ने क्या नया सीखा? कक्षा स्तर या विषय स्तर पर उन्हें क्या फायदा हुआ? ट्रेकिंग की व्यवस्था न होने से सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी कोई फायदा होने को लेकर संदेह है। क्योंकि, बिना ट्रेकिंग कोई भी यूजर संबंधित प्रोजेक्ट को कभी सीरियस भी नहीं लेता।
ग्लोबस इंफोकॉम (Globus Infocom)के बारे में गूगल पर सर्च करने पर पता चलता है कि इसका टर्नओवर घटा है और कंपनी खुद बताती है कि हरियाणा सरकार से ऑर्डर में कमी आने के कारण टर्नओवर में कमी आई है।जिससे साफ पता चलता है कि नोएडा बेस्ड ग्लोबस इंफोकॉम कंपनी अपने राजस्व का 75 प्रतिशत से अधिक हरियाणा सरकार से ही हासिल कर रही है और इसकी सहयोगी डमी ब्रांड (कंपनियों) को तो आज तक किसी भी राज्य सरकार से कोई काम ही अलॉट नहीं हुआ है। ऐसे में ग्लोबस इंफोकॉम को अलॉट कार्य की गुणवत्ता भी संदेह के घेरे में है। जबकि, शिक्षा विभाग व डायरेक्टर सप्लाई एंड डिस्पोजल में मौजूद इस कंपनी के पैरोकार बार-बार इनका ही टेंडर फाइनल करवाते हैं। जरूरत के मुकाबले अधिक स्मार्ट क्लासरूम बनाने पर इनका जोर है, जिससे अधिक से अधिक पेमेंट कंपनी को हो और इनका कमीशन बढ़ता रहे। इस मामले की जांच के लिए प्रदेश सरकार को भी विभिन्न स्तर पर सबूतों के साथ विस्तार से जानकारी दी जा चुकी है। निष्पक्ष जांच होने पर पता चल जाएगा कि किस कारण से शिक्षा विभाग में अधिकारी/कर्मचारी बरसों से एक ही कुर्सी पर विराजमान हैं।
जांच होने पर साफ हो जाएगा कि ग्लोबल इंफोकॉम के आशीष धाम, लॉयजनर तरूण खुल्लर उर्फ बॉबी के शिक्षा विभाग में किन-किन अधिकारियों व कर्मचारियों से प्रगाढ़ संबंध हैं। बाकायदा यह भी साफ हो जाएगा कि अभी तक कौन-कौन अधिकारी इनके ईशारों पर नाच चुके हैं या फिर नाचने की तैयारी में हैं।
कमरे कम, ऑर्डर ज्यादा
शिक्षा विभाग के पुख्ता सूत्र बताते हैं कि अधिक से अधिक स्मार्ट क्लासरूम बनाने के चक्कर में अफसरों ने कितने ही सरकारी स्कूलों में तो कमरों की संख्या के मुकाबले अधिक ऑर्डर भिजवा दिए। यानी, टीवी आदि कमरों की संख्या से ज्यादा पहुंचा दिए गए। ऐसे कई मामले हैं, जहां स्कूल में कमरे 8, 10 या 12 है और वहां स्मार्ट क्लासरूम स्थापित करने के लिए 12, 15 या 16 टीवी भेजे गए हैं। बताते हैं कि यह सब अपनी स्वार्थसिद्धी व कमीशनखोरी के लिए ही किया गया है।