बैंक और वित्तीय संस्थाएं आपको आपको कर्ज देगी या नहीं और देगी तो किन शर्तों पर.
भारत के लोग नहीं जानते उनका क्रेडिट स्कोर कैसे तय होता है, ‘सिबिल’ पर सरकारी निगरानी जरूरी
लॉवर ‘सिबिल स्कोर’ बैंकों को ऊंची ब्याज दर वसूलने की सुविधा देता है, इससे सवाल उठता है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों, बैंकों, वित्तीय संस्थानों, और क्रेडिट ब्यूरो के बीच सांठगांठ तो नहीं है.
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==कार्ति पी. चिदंबरम===
अति महत्वपूर्ण क्रेडिट स्कोर का नियंत्रण करने वाले तमाम क्रेडिट ब्यूरो की अनकही और शाही गाथा आज फाइनेंस सेक्टर के हरेक व्यक्ति को प्रभावित कर रही है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां फाइनेंशियल मौकों के द्वार पर बैठे दरबानों के रूप में बहुत ताकत रखती हैं.
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वह तीन अंकों वाले डिजिटल आंकड़े, क्रेडिट स्कोर का निर्धारण करने के लिए बेहिसाब व्यक्तिगत वित्तीय आंकड़ों को इकट्ठा करती हैं और उन्हें प्रोसेस करती हैं. भारत में ये स्कोर महज संख्या नहीं बल्कि वो यह तय करने का आधार बनती है कि बैंक और वित्तीय संस्थाएं आपको आपको कर्ज देगी या नहीं और देगी तो किन शर्तों पर.
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लाखों लोगों को फाइनेंशियल ताकत देने वाली ये एजेंसियां उपभोक्ताओं का आर्थिक भविष्य तय करती हैं, लेकिन उनमें पारदर्शिता की कमी और वो किसी जांच-परीक्षण से महफूज़ रहते हुए जिस तरह काम करती हैं उसने उनकी निष्पक्षता, प्रामाणिकता और जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल उठते रहे हैं.
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भारत में चार प्रमुख क्रेडिट ब्यूरो(Credit rating bureaus) हैं — ‘सिबिल’ (ट्रांसयूनियन), एक्सपेरियन, इक्वीफैक्स, और ‘क्रिफ हाइमार्क’. इनमें ‘सिबिल’ को भारत में सबसे व्यापक तौर पर स्वीकार्य उन वित्तीय संस्थाओं में गिना जाता है, जो कर्ज लेने की व्यक्ति की योग्यता को अहम रूप से प्रभावित करती हैं. ‘सिबिल’ (ट्रांसयूनियन) शिकागो से काम कर रही क्रेडिट ब्यूरो कंपनी है, जो पहले ‘सिबिल’ नाम की एक घरेलू संस्था थी. 2003 में इसने ‘ट्रांसयूनियन’ को पार्टनर बनाया. इतने वर्षों में ‘ट्रांसयूनियन’ ने ‘सिबिल’ में अपनी दावेदारी धीरे-धीरे बढ़ा ली और 2017 तक आते-आते उसका 92.1 फीसदी स्वामित्व हासिल कर लिया. भारत में अपने कामकाज के बूते इस कंपनी ने भारी मुनाफा कमाया और भारत उसकी कमाई का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार बन गया. इसी तरह, डाटा एनालिसिस की आयरलैंड स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘एक्सपेरियन पीएलसी’ और अमेरिका के जॉर्जिया से काम करने वाली क्रेडिट रिपोर्टिंग एजेंसी ‘इक्वीफैक्स’ भारत की वित्तीय व्यवस्था पर अहम प्रभाव रखती हैं और हर किसी की रेटिंग करती हैं.
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कर्ज़ लेने की काबिलियत तय करने के लिए इन ब्यूरो द्वारा पेश किए जाने वाले क्रेडिट स्कोर पर बढ़ती निर्भरता को लेकर गंभीर सवाल उभरते हैं. क्रेडिट स्कोर तय करने वाली व्यवस्था अपारदर्शी, अनिश्चित और दोषपूर्ण बनी हुई है जिनकी वजह से उसकी निष्पक्षता को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है. करोड़ों भारतीयों के संवेदनशील वित्तीय आंकड़ों का विशाल भंडार इन ब्यूरो के कब्ज़े में है. उदाहरण के लिए 2019 तक ‘ट्रांसयूनियन सिबिल’ की पहुंच अहम नॉन-क्रेडिट डाटा स्रोतों के अलावा राष्ट्रीय मतदाता रजिस्टर (जिसमें करीब 79 करोड़ रिकॉर्ड्स दर्ज हैं), प्रॉपर्टी रजिस्टर और टैक्स रेकॉर्ड्स तक है. इस डेटा का इस्तेमाल करके क्रेडिट स्कोर तैयार किए जाते हैं, लेकिन इस तरह की संवेदनशील जानकारियों पर ‘सिबिल’ का कब्ज़ा प्राइवेसी, सिक्योरिटी और डेटा संबंधित संप्रभुता को लेकर गंभीर चिंताओं को जन्म देता है.
इस स्थिति की वजह से ये महत्वपूर्ण सवाल भी उभरते हैं कि करोड़ों भारतीयों की वित्तीय तकदीर किसी विदेशी निजी संस्था के नियंत्रण में क्यों हो? कि इस विशाल डाटा को इकट्ठा करने, उन्हें प्रोसेस करने और अहम वित्तीय फैसले करने के लिए उनका उपयोग करने की प्रक्रियाएं लोगों के लिए ज्यादा पारदर्शी क्यों न हों?
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===कर्ज़दाता, ब्यूरो, और गुप्त साठगांठ===
आज की दुनिया में क्रेडिट स्कोर वित्तीय सेवाएं हासिल करने की मुख्य कुंजी बन गई है क्योंकि यह अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने की व्यक्ति की क्षमता को सीधे प्रभावित करता है. मिडिल क्लास के कई लोगों के लिए अच्छी क्रेडिट रेटिंग के साथ अपने वित्तीय सफर की शुरुआत बहुत महत्व रखती है. यह उन्हें एजुकेशन लोन, पर्सनल लोन, गोल्ड लोन, कार लोन और हाउस लोन हासिल करने में मददगार होती है और यह सभी लोन उन्हें अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन इस महत्व के बावजूद क्रेडिट रेटिंग व्यवस्था बुरी तरह दोषपूर्ण और तानाशाही भरी है जिसके कारण आम व्यक्ति इस पर भरोसा नहीं कर सकता. मैंने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से संबंधित यह मसला हाल में संसद की बैठक के दौरान उठाया और ज़ोर दिया कि इन चिंताओं की लंबे समय से अनदेखी की जा रही है.
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मेरे एक्स हैंडल पर अनगिनत व्यक्तियों ने अपने अनुभवों के आधार पर अपनी जायज शिकायतें और निराशाएं जाहिर की हैं. किसी व्यक्ति का क्रेडिट स्कोर तय करने वाले एल्गोरिद्म का खुलासा नहीं किया जाता और कर्ज़ लेने वालों को यह नहीं बताया जाता कि उनका क्रेडिट स्कोर कैसे तय किया गया है. यह अपारदर्शिता तब समस्या बन जाती है जब कर्ज़ लेने वाले के नियंत्रण से बाहर की बातें — बैंकों से अपडेट आने में देरी, तकनीकी खामियां, बंद पड़े खातों पर डिफॉल्ट आदि — इस स्कोर को प्रभावित करती हैं. दोषपूर्ण रिपोर्टिंग, और डाटा में विसंगतियां दूसरी बड़ी समस्या है.
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उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति ने लिखा कि बैंक में अपना क्रेडिट कार्ड बंद करवाने के बावजूद ‘सिबिल’ एनुअल फीस का भुगतान न करने के नाम पर उनके क्रेडिट स्कोर को घटाता रहा. दुर्भाग्य से, ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है है जिससे कोई व्यक्ति ऐसी विसंगतियों को चुनौती दे सके या उसे ठीक करवा सके. एक व्यक्ति, जिसका ‘सिबिल’ स्कोर 700 था, कोविड-19 महामारी के बाद कार खरीदना चाहता था. उसने एक सरकारी बैंक में लोन के लिए आवेदन किया, लेकिन उसे जवाब मिला कि उसके ‘लॉ’ ‘सिबिल’ स्कोर की वजह से उसे लोन नहीं दिया जा सकता. अंततः एक ब्रोकर उसे एक निजी बैंक ले गया जिसने उसे 13.2 फीसदी की ब्याज दर पर लोन दिया, जो कि रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित ‘एमसीएलआर’ दर से 6 फीसदी ऊंची है.
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लॉवर ‘सिबिल स्कोर’ बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को ऊंची ब्याज दर वसूलने की सुविधा देती है, जिससे ऊंची दरों पर लोन की पेशकश करने का प्रोत्साहन मिलता है. इससे यह सवाल उभरता है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों, बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं (एनबीएफसी), और क्रेडिट ब्यूरो के बीच सांठगांठ तो नहीं है. एक डिजिटल एनबीएफसी से कर्ज ले चुका एक व्यक्ति कोविड की वजह से कुछ ईएमआई का भुगतान समय पर नहीं कर पाया, लेकिन कुछ महीने बाद उसने इकट्ठा भुगतान कर दिया, लेकिन उसने पाया कि उसकी ‘सिबिल’ रिपोर्ट में उस कर्ज को ‘राइट ऑफ’ किया हुआ बताया गया था. एक ग्राहक ने ‘सिबिल’ को 1 जून को लिखा कि “आपने बिना कारण बताए मेरा सिबिल स्कोर 783 से घटाकर 702 कर दिया. वह स्कोर हासिल करने में मुझे एक साल से ज्यादा समय लगा था. आप इस गलती को सुधारिए, वरना मैं आत्महत्या कर लूंगा.”
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इसी तरह, ‘एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियां’ (एआरसी) में कर्ज़ चुका देने के बावजूद उसे सिस्टम में अक्सर अपडेट नहीं किया जाता जिसके कारण पुराना और गलत क्रेडिट स्कोर नया कर्ज़ लेने या अनुकूल ब्याज दर हासिल करने में बाधा बनता है. भारत में क्रेडिट स्कोरिंग सिस्टम की खामियों के कारण कमजोर तथा हाशिये पर पड़े समूहों, किसानों, निम्न आय वालों, औपचारिक वित्तीय रिकॉर्ड तक पहुंच न रखने वाले बुरी तरह प्रभावित होते हैं. मसलन, कई किसानों को अपने क्रेडिट स्कोर में नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि सरकारी सब्सीडी या कर्ज़ माफी को जायज़ भुगतान के रूप में मान्य नहीं किया जाता.
दूसरी बड़ी समस्या यह है कि सभी क्रेडिट रेटिंग ब्यूरो निजी संस्थाएं हैं (Credit rating bureaus are private institutions)और वो सार्वजनिक कार्य कर रही हैं, यह तय कर रही हैं भारत में लाखों लोग वित्तीय सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं या नहीं, जबकि उनके यहां शिकायत निबटारे की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. विशाल कार्य के मद्देनजर यह सवाल उठता है कि क्या किसी निजी कंपनी को बिना किसी स्वतंत्र निगरानी व्यवस्था के इतनी महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी जा सकती है? ऐसा महत्वपूर्ण काम या तो किसी सरकारी संस्था को सौंपा जाए या कम-से-कम एक ऐसी सार्वजनिक संस्था हो जो उनकी विश्वसनीयता, पारदर्शिता और नियमान के पहलुओं की निगरानी करे.
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=वित्तीय न्याय==
भारत में क्रेडिट रेटिंग की जो मौजूदा व्यवस्था है वह सामान्य उपभोक्ताओं और क्रेडिट ब्यूरो के बीच के संबंध की विषमता को और बढ़ाती ही है. अपारदर्शी तरीकों और जवाबदेही की कमी के कारण उपजे इस असंतुलन से वित्तीय व्यवस्थाओं में भरोसा कमजोर होता है और यह असमानताओं को और बढ़ाता है. वित्तीय समावेश की जगह यह व्यवस्था वित्तीय अलगाव को बढ़ावा देती है और व्यक्तियों पर ऊंची ब्याज दर, गलत स्कोर थोपती है और गलतियों के सुधार का रास्ता बंद करती है.
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इन व्यवस्थागत समस्याओं के समाधान के लिए तुरंत सुधारों की ज़रूरत है ताकि नागरिकों को उचित सेवा मिले. निगरानी को मजबूत करके, विवाद निपटारे की प्रक्रियाओं को बेहतर बनाना और शिकायत निबटारे की सुलभ, तेज़, और तत्काल व्यवस्था बनाना तुरंत जरूरी है. क्रेडिट ब्यूरो पर नियमन संबंधी ज्यादा लागू करने से उपभोक्ताओं और कॉर्पोरेट दिग्गजों के बीच के विषम संबंध में संतुलन स्थापित किया जा सकता है. अंततः, लक्ष्य एक ऐसी वित्तीय व्यवस्था बनाने का होना चाहिए जो सभी नागरिकों की गरिमा और कुशलता को मूल्यवान माने; भरोसा और वीटिय ताकत बढ़ाए, न कि एक शोषणकारी यथास्थिति को मजबूत करे.
(कार्ति पी चिदंबरम शिवगंगा से सांसद और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं. वे तमिलनाडु टेनिस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी हैं. उनका एक्स हैंडल @KartiPC है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
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