सिर्फ सीएम खट्टर के साथ फोटो खिंचवाने के लायक रह गए बीरेंद्र सिंह
अटल हिन्द/राजकुमार अग्रवाल
नई दिल्ली। प्रदेश के बड़े नेताओं में शामिल पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाते समय जो ख्वाब देखे थे उनमें से तीन ख्वाब वह पूरे करने में सफल रहे।
पहला ख्वाब – बीरेंद्र सिंह केंद्र सरकार में मंत्री बने। भूपेंद्र हुड्डा द्वारा मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री बनते-बनते रुकवा देने की कसक बीरेद्र सिंह के दिलो-दिमाग पर घर कर गई थी। इसी अपमान ने उन्हें कानून छोड़ने को मजबूर किया। भाजपा ने मोदी सरकार में मंत्री बना कर बीरेंद्रद्र सिंह की कसक को पूरा किया।
दूसरा ख्वाब- बीरेंद्र सिंह ने अपनी पत्नी को उचाना से विधायक बना कर घर की गृहमंत्री को प्रदेश की महिला नेत्रियों में शामिल कर दिया।
तीसरा ख्वाब– बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार से लोकसभा सांसद बनाकर बीरेंद्र सिंह ने अपनी सियासी विरासत सफलतापूर्वक आगे बढ़ा दी।
इन तीन चाहतों को पूरा करने की कीमत भी बीरेंद्र सिंह को चुकानी पड़ी है।
1991 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए बीरेंद्र सिंह ने हमेशा खरी खरी बात कहने में गुरेज नहीं किया लेकिन पिछले कुछ समय से भाजपा ने उनकी खनकती आवाज पर खामोशी का पहरा लगा दिया है।
वे कभी किसान आंदोलन के पक्ष में बोलते हैं तो चुप्पी साधकर केई दिन के लिए छुप जाते हैं।
कभी भाजपा में उनकी घुटन की खबरें बाहर आती हैं तो कभी बेटे को मंत्री बनाने के लिए उनकी दिल्ली दरबार की कोशिशें चर्चा हासिल करती हैं।
इन सबके बीच महसूस हुआ है कि बीरेंद्र सिंह बड़े नेता बनते-बनते अब सिर्फ मनोहर लाल खट्टर के साथ फोटो खिंचवाने के लायक ही रह गए हैं।
बेटे के सियासी के लिए उन्हें चाहकर भी किसान आंदोलन से किनारा करना पड़ रहा है।
जाट वोटरों के बीजेपी के खिलाफ खड़ा होने के कारण बीरेंद्र सिंह के माथे पर चिंता की लकीरें जरूर है लेकिन सियासी मजबूरी उनका रास्ता रोक रही हैं और साफ-साफ बता रही हैं कि बीरेंद्र सिंह मन मारकर भाजपा में दिन गुजार रहे हैं।