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भारत  में 33 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार 2022

संजीव ठाकुर
संजीव ठाकुर

====संजीव ठाकुर=====

बच्चे देश के भविष्य होते हैl यदि देश का भविष्य ही कुपोषित रहेगा, कमजोर रहेगा तो सशक्त राष्ट्र की कल्पना करना बेमानी होगा l देश में कुपोषण से बच्चे यानी आने वाले कल के जिम्मेदार नागरिकों की हालत बहुत ज्यादा चिंताजनक है।  देश के भविष्य, नौनिहालों को कुपोषित होने से बचाएं।

भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या कितनी है? भारत में कुपोषण की स्थिति सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के 34 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में 33 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार है (33 lakh children in India are malnourished by 2022)और इनमें 50% बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित होकर बीमारी को झेल रहे हैं देश में भले ही जोर शोर से बाल दिवस हर साल मनाया जाता है और उसी पर करोड़ों खर्च कर दिया जाता है देश में एक महिला तथा बाल विकास मंत्रालय अलग खोल के रखा गया है, पर बच्चों के कुपोषण पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका हैl

ऐसी क्या वजह है की नौनिहालों के पोषण के लिए केंद्र या राज्य सरकार के पास इतने संसाधन होने के बावजूद धन मुहैया नहीं हो पाता हैl मलेरिया, टीबी और ना जाने अन्य कितनी बीमारियों पर भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने अरबों रुपए खर्च कर दिए हैं, पर जो भारत की मुख्य रीढ़ की हड्डी है यानी कि आने वाले कल के नागरिक वर्तमान के बच्चे यदि कुपोषित हैं तो यह अत्यंत चिंतनीय सोचनीय तथा विचारणीय पहलू है।

भारत में कुपोषण का संकट और गहराया, देशभर में 34  लाख से अधिक बच्चे कुपोषित सरकारी एजेंसियों द्वारा एक आर,टी,आई के जवाब में बताया गया कि 34 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों संकलित आंकड़ों के मुताबिक 34 लाख बच्चे कुपोषित पाए गए हैंl

भारत का सबसे कुपोषित राज्य कौन सा है? इनमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र बिहार गुजरात और मध्यप्रदेश है विगत दिनों कोरोना संक्रमण के कारण भी बच्चे कुपोषित हुए हैं और आने वाले कल के दिन में भी और बच्चों के कुपोषण तथा मृत्यु की आशंका बढ़ गई है

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 18 लाख बच्चे बहुत ज्यादा कुपोषित है एवं शेष 16 लाख बच्चे अल्प कुपोषित हैं जब अरबों रुपए अन्य बीमारियों के संक्रमण में लगाए जा सकते हैं तो एक अभियान के तहत बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए भी मैराथन प्रयास किए जाने चाहिए ।

जिससे बच्चे तो कम से कम कुपोषित ना हो वैसे भारत कुपोषण के मामले में वैश्विक स्तर पर बांग्लादेश तथा पाकिस्तान से भी पीछे है उसका नंबर 101वां है, ऐसे हालात में महिला तथा बाल विकास को महिलाओं तथा बच्चों के लिए ही एक विशेष अभियान चलाकर उन्हें कुपोषित होने से बचाना होगा पोषण ट्रैकर के हवाले से बताया गया कि सिर्फ महाराष्ट्र में ही कुपोषित बच्चों की संख्या छह लाख दर्ज की गई है जिनमें 1,57 लाख बच्चे अल्प कुपोषित तथा 4,58 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं।

दूसरे नंबर पर बिहार प्रदेश आता है जहां 5 लाख कुपोषित बच्चे और तीसरे नंबर पर गुजरात प्रदेश होता है जहां 3:30 लाख बच्चे कुपोषित हैं महाराष्ट्र बिहार गुजरात और मध्य प्रदेश बहुत सक्षम और देश के बड़े राज्य हैं, यहां पर स्वास्थ्य विभाग पर अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं,

फिर ऐसी क्या वजह है कि बच्चों के कुपोषण की दर इतनी ज्यादा तथा चिंताजनक हो गई है कुपोषित बच्चे भी बड़े होते हैं तो वह कई बीमारियों को लेकर धीरे-धीरे बढ़ते हैं और इससे उनकी लंबाई तथा स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है देश के 34% कुपोषित बच्चों का कद औसत कद से बहुत कम हो जाता है 21% बच्चे जो कुपोषण के कारण यदि वह बच भी जाते हैं तो उनका वजन अत्यंत कम हो जाता है।

ऐसे कम लंबाई तथा कम वजन के बेचारे बच्चे देश का क्या भविष्य बना पाएंगे या देश में अपना योगदान क्या दे पाएंगे। इसलिए भारत सरकार राज्य सरकारों को कम से कम बच्चों की तरफ तो ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता होगी वैश्विक भूख सूचकांक( ग्लोबल हंगर इंडेक्स) के आंकड़ों के हिसाब से 2021 में भारत 116 देशों में 101वें स्थान पर पहुंच गया है इस मामले में वह अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल से काफी पीछे हैl

इस मामले में भारत 2020 में ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार 94 वें स्थान में था, और आज की स्थिति में 101वें स्थान में पहुंच गया है। इसका सीधा सीधा मतलब है कि हर वर्ष कुपोषण से शिकार बच्चों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है।

कुपोषण के मामले में भारत की राजधानी दिल्ली भी पीछे नहीं है दिल्ली प्रदेश की स्थिति भी चिंताजनक है अधिकारी और मंत्री भले बड़े-बड़े दावे करने में पीछे नहीं हटते हैं पर बच्चों की स्थिति चिंताजनक है,दिल्ली में ही 2 लाख बच्चे कुपोषित हैं, आंध्र प्रदेश में 2,70 लाख बच्चे कुपोषित हैं, कर्नाटक में 2,5 लाख बच्चे उत्तर प्रदेश में 19लाख बच्चे,तमिलनाडु में 1,80लाख ,असम में 1,80लाख और तेलंगाना में 1,60 लाख बच्चे कुपोषण की स्थिति में जी रहे हैं।

इस देश में जहां अरबों रुपए सरकार के 40 से ज्यादा विभागों में सालाना खर्च किए जा रहे हैं, तो यह स्वास्थ्य विभाग में विशेष तौर पर बच्चों के लिए खर्च करने रिसर्च करने और उन पर विशेष ध्यान देने में कोताही क्यों बरती जा रही है।

यह तथ्य न सिर्फ चिंतनीय है बल्कि स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी महिला तथा बालकों के विकास के लिए विशेष अभियान चलाकर उनके स्वास्थ्य की रक्षा हेतु निर्देशित किया है।

वैश्विक आंकड़े भी यही बताते हैं कि बच्चों को जो कि किसी भी देश का भविष्य होते हैं कुपोषण से हर तरह से सुरक्षित किया जाना सुनिश्चित करना होगा ,अन्यथा ये कुपोषित बच्चे ही आगे चलकर देश के नागरिक नागरिक बनेंगे। ऐसे में आप स्थिति की कल्पना कर सकते हैंदेश की विशाल जनसंख्या को देखते हुए बच्चों के कुपोषण की दर जरूर कम है, लेकिन हर साल इनके कुपोषण की दर की वृद्धि चिंताजनक परिणाम देने वाली ना हो इस पर हम सबको ध्यान देना होगा।

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