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तिरछी नज़र: शाह…बादशाह और किसान

तिरछी नज़र: शाह…बादशाह और किसान
BY-डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
“पता नहीं क्यों किसान यह माने बैठे हैं कि जहांपनाह वायदा भूल गए हैं। मैं तो सबको पहले ही बता चुका हूं कि आप के वायदे, वायदे नहीं, जुमले होते हैं…” शाह ने हंसते हुए बादशाह को बताया
Peeking: Shah…Badshah and Peasant(Farmers Photo Credit : Reuters)
दिल्ली के बादशाह की गद्दी सलामत रहे। वैसे तो बादशाह का राज पूरे देश में था पर उसे कहा दिल्ली का बादशाह ही जाता था। उसकी राजधानी दिल्ली जो थी। देश भर में कुछ भी होता रहे पर बादशाह को फर्क तभी पड़ता था जब उसकी धमक दिल्ली तक सुनाई देती थी।Peeking: Shah…Badshah and Peasant
दिल्ली का बादशाह दिल्ली में बैठा आराम से माउथ आर्गन बजा रहा था। उसे माउथ आर्गन बजाना बहुत ही पसंद था क्योंकि वह बिना माउथ आर्गन के ही माउथ आर्गन बजा लेता था। वैसे भी बादशाह के लिए माउथ आर्गन बजाना बहुत अधिक आसान था क्योंकि बादशाह का माउथ बहुत ही बड़ा था। इसके अलावा बांसुरी को तो नीरो पहले ही बदनाम कर चुका था तो बांसुरी को और बदनाम करने का स्कोप बचा ही नहीं था। तो बादशाह ने माउथ आर्गन को ही बदनाम करने की सोची।King and Farmer
एक रात जब बादशाह की प्रजा महंगाई से परेशान थी, बेरोजगारी से बेकरार थी, भूख से बौखलाई थी, महीने के मात्र पांच किलो अनाज से भूखे पेट नींद न आने के कारण अलसाई थी, ऐसी ही एक रात जब बादशाह चैन से माउथ आर्गन बजा रहा था, बादशाह को एक धमक सुनाई दी। बादशाह के चैन में खलल पडा़। उसके माउथ आर्गन की धुन गड़बड़ा गई। ऐसे समय में बादशाह ने अपने प्रमुख रत्न को बुलवा भेजा।tirachhee nazar: shaah…baadashaah aur kisaan

बादशाह के दरबार में अनेक रत्न होते थे। बादशाह उससे पहले हुए सभी बादशाहों, सुल्तानों, राजाओं, नरेशों, हाकिमों, खलीफाओं आदि में सबसे महान था। कम से कम वह बादशाह तो यही मानता था। इसलिए उसके दरबार में नौ से अधिक रत्न थे और होने भी चाहिए थे।
बादशाह अपने रत्नों को शाह कहता था। मैं बादशाह तो मेरे रत्न शाह। एक बादशाह था और उसके अनेक शाह। और सब रत्न तो बराबर नहीं होते हैं। हो भी नहीं सकते हैं। सबसे बड़ा रत्न था अलिफ। उसके बाद बे। फिर पे। उससे जूनियर ते मतलब इसी तरह एल्फाबेटिकली शाहों की सीनियोरिटी तय थी।
तो धमक होते ही बादशाह घबरा उठा। क्या बादशाह का सिंहासन डगमगा रहा है? उसने अपने सबसे सीनियर रत्न अलिफ को बुला भेजा। अलिफ ने अपने महल से राजमहल पहुंचने में सिर्फ दो घड़ी का समय लगाया। परन्तु बादशाह को वे दो घड़ी, दो सदी के बराबर लगीं। अलिफ के बादशाह के शयन‌ में दाखिल होते ही बादशाह बोले, “अलिफ, यह भूकंप जैसी धमक कैसी है।
क्या गाय माता ने अपना सींग बदला है या फिर शेषनाग का फन‌ थक गया है”। बादशाह यही मानते थे कि पृथ्वी या तो गाय माता के सींग पर टिकी है या फिर‌ शेषनाग के फन‌ पर। और सिर्फ इतना ही नहीं, वे यह भी मानते थे कि मानव धड़ पर हाथी के सिर का प्रत्यारोपण हो सकता है और घड़ों में मानव बिंब रख सौ-सौ बच्चे पैदा किए जा सकते हैं। बादशाह और उनके शाह तो यह मानते ही थे, बादशाह द्वारा मजबूर करने के कारण उनकी प्रजा और‌ वैज्ञानिक भी यही मानने लगे थे।
अलिफ ने राजा को समझाया, “जहांपनाह, आप सलामत हैं। कोई भूकंप वूकंप नहीं आया है। पृथ्वी गाय माता के सींग, शेषनाग के फन‌ और आपके कंधों‌ पर मजबूती से टिकी हुई है”। यह सुन बादशाह बहुत खुश हुए, “फिर यह धमक कैसे”?
“जहांपनाह, ये किसान हैं न, दिल्ली आना चाहते हैं। आपके राजमहल को घेरना चाहते हैं। कहते हैं आपसे मिलना है, आपको आपका वायदा याद दिलाना है। आपको आपकी तपस्या में जो कमी रह गई थी, उसकी याद दिलानी है। यह धमक उसी की है”।
“तो क्या तुम्हें अपना कर्तव्य नहीं याद है”, बादशाह ने शाह से पूछा, “तुम्हें ऐसे ही शाह नम्बर एक नहीं बनाया है”।
“जहांपनाह, गुस्ताखी माफ हो। मैं तो सबको पहले ही बता चुका हूं कि आप के वायदे, वायदे नहीं, जुमले होते हैं। लोगों को यह भी पता है कि आप की गारंटी, होने की नहीं, न होने की गारंटी होती है। फिर भी पता नहीं क्यों किसान यह माने बैठे हैं कि जहांपनाह वायदा भूल गए हैं। आपको आपका वायदा याद दिलाने दिल्ली आने की जिद पाले बैठे हैं। सोचते हैं आपको वायदा याद दिलाया तो आप पूरा कर देंगे”, शाह अलिफ ने हंसते हुए बादशाह को बताया।
जहांपनाह ने तभी, वहीं, उसी समय, अलिफ को डयूटी दे दी कि कोई भी किसान दिल्ली में दाखिल न हो पाए। उन्हें अलिफ की काबीलियत पर पूरा विश्वास था। अलिफ पहले भी ऐसी नाज़ुक स्थितियां सम्हाल चुके थे। किसान दिल्ली में दाखिल न हो पाएं, यह जिम्मेदारी अलिफ को सौंप बादशाह फिर चैन से माउथ आर्गन बजाने लगे।
और अब आप सबको यह तो पता ही है कि अलिफ ने बादशाह द्वारा दी गई अपनी यह ड्यूटी कितनी जिम्मेदारी से निभाई है।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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