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पेगासस खुलासों पर नरेंद्र मोदी और इमैनुएल मैक्रों की भिन्न प्रतिक्रियाओं के क्या अर्थ हैं

पेगासस खुलासों पर नरेंद्र मोदी और इमैनुएल मैक्रों की भिन्न प्रतिक्रियाओं के क्या अर्थ हैं
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पेगासस खुलासों पर नरेंद्र मोदी और इमैनुएल मैक्रों की भिन्न प्रतिक्रियाओं के क्या अर्थ हैं पेगासस खुलासों पर नरेंद्र मोदी और इमैनुएल मैक्रों की भिन्न प्रतिक्रियाओं के क्या अर्थ हैं BY सिद्धार्थ वरदराजन फ्रांस की सरकार ने न सिर्फ ‘अपुष्ट मीडिया रपटों’ को गंभीरता से लिया, बल्कि जवाबदेही तय करने और अपने नागरिकों, जो ग़ैर क़ानूनी जासूसी का शिकार हुए या हो सकते थे, के हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र तरीके से कार्रवाई की. इसके उलट भारत ने निगरानी या संभावित सर्विलांस के शिकार व्यक्तियों को ही नकार दिया.अगाथा क्रिस्टी ने लिखा है : ‘जुर्म छिपाए नहीं छिपता है. अपने तरीकों को बदलने की चाहे जितनी कोशिश करो, जो कि तुम करोगे, तुम्हारी पसंद, तुम्हारी आदतें, तुम्हारा रवैया और तुम्हारी आत्मा को तुम्हारे कदम जाहिर कर ही देते हैं.
पेगासस खुलासों पर नरेंद्र मोदी और इमैनुएल मैक्रों की भिन्न प्रतिक्रियाओं के क्या अर्थ हैं
The Prime Minister, Shri Narendra Modi and the President of the French Republic, Mr. Emmanuel Macron at the Founding Conference of the International Solar Alliance, at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on March 11, 2018.

पिछले महीने पेगासस प्रोजेक्ट- एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, द वायर जिसका एक हिस्सा है- ने दुनियाभर में सरकारों द्वारा विश्व नेताओं, विपक्षी राजनीतिज्ञों, पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सैन्य श्रेणी के इजरायली स्पायवेयर पेगासस के जरिये जासूसी का निशाना बनाए जाने का खुलासा किया. वास्तविक और संभावित निशाने यों तो चार महाद्वीपों के आरपार फैले हुए थे, लेकिन हम सिर्फ दो देशों पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं ताकि इन खुलासों को लेकर इन देशों के आधिकारिक प्रतिक्रियाओं के अंतर को समझा जा सके और यह भी समझ में आ सके कि आखिर उनकी प्रतिक्रियाओं में अंतर क्या बयान करता है?ल मोंद में प्रकाशित फ्रेंच नामों की दो श्रेणियां थीं : उन 13 व्यक्तियों की एक संक्षिप्त सूची, जिनके फोन पेगासस से संक्रमित पाए गए थे या उन्हें पेगासस के द्वारा निशाना बनाया गया था. एक दूसरी लंबी सूची ऐसे व्यक्तियों की थी, जिनके फोन का फॉरेंसिक परीक्षण नहीं किया जा सका था, लेकिन जो संभावित तौर पर निशाने पर थे. यहां इस तथ्य को ध्यान में रखा जा सकता है कि उनके नंबर उसी सूची में थे जिसमें वास्तव में हैक किए गए फोन के नंबर भी थे. इस बड़ी सूची मे सबसे महत्वपूर्ण नाम फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का है. उनके साथ एक दर्जन से ज्यादा कैबिनेट मंत्रियों के नाम भी थे. ऐसा लगता है इन सभी फ्रेंच निशानों का चयन इजरायली स्पायवेयर कंपनी एनएसओ ग्रुप के एक मोरक्को के एक क्लाइंट, जिसकी अभी तक पहचान नहीं की जा सकी है, द्वारा किया गया. भारत में भी द वायर द्वारा उजागर किए गए नामों की दो श्रेणियां थीं. इसने शुरू में पाया कि विपक्षी नेता ममता बनर्जी के राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर के फोन समेत 10 फोन या तो पेगासस से संक्रमित थे या उन फोन में उन्हें हैक करने की कोशिश के संकेत मिले थे. अतिरिक्त फॉरेंसिक जांच के बाद यह संख्या अब 13 हो गई है.संभावित निशानों की दूसरी सूची में करीब 300 सत्यापित नंबर थे. इनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनके सात सहयोगियों और दोस्त, मोदी सरकार के दो मंत्रियों, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार, सीबीआई के एक पूर्व मुखिया और 2019 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली एक महिला के नंबर शामिल थे. इन सारे नंबरों का चयन एनएसओ समूह के पहचान न किए जा सके क्लाइंट द्वारा किया गया लगता है. संयोग से उसी क्लाइंट ने दिल्ली के कई विदेशी राजनयिकों और 800 से ज्यादा पाकिस्तानी नंबरों का भी चयन किया. चूंकि ये नंबर जासूसी या काउंटर-टेररिज्म से संबंधित थे, इसलिए द वायर ने उनके बारे में रिपोर्ट न करने का फैसला किया. लेकिन उनके नबंरों की उसी डेटाबेस में मौजूदगी, जिसमें भारतीय नंबर भी थे, उस देश की एक ओर महत्वपूर्ण इशारा करते हैं, जिससे इस अनजाने क्लाइंट का संबंध है.फ्रांस ने इजरायल पर उठाई उंगली, भारत एनएसओ के बचाव में उतराचलिए, अब हम इन खुलासों पर भारतीय और फ्रेंच सरकारो की प्रतिक्रियाओं की तुलना करते हैं. मैक्रों का नाम सामने आते ही, फ्रांस ने यह नहीं कहा कि -‘सबूत कहां है?’ बजाय इसके, इसने कई जांचों की घोषणा कर दी. यह एक संवेदनशील मसला था, क्योंकि मोरक्को एक नजदीकी रणनीतिक सहयोगी है और फ्रांस को आतंकवाद निरोधी मोर्चे पर रबात के सहयोग की जरूरत है. मैक्रों ने इजरायली प्रधानमंत्री नफताली बेनेट को जवाब मांगने के लिए फोन किया. बेनेट ने एनएसओ के कामकाज की जांच करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया और कंपनी पर छापा भी मारा. उन्होंने फ्रांस को आश्वस्त करने के लिए अपने रक्षा मंत्री को पेरिस भेजा कि इस मामले की तह तक जाने में फ्रांस की पूरी मदद की जाएगी. फ्रांस की राष्ट्रीय साइबर सिक्योरिटी एजेंसी एएनएनएसआई ने निशाने की सूची में नाम आए तीन पत्रकारों के फोन की फॉरेंसिक जांच की और पेगासस प्रोजेक्ट के दावों की पुष्टि की : ये फोन वास्तव में स्पायवेयर से संक्रमित थे. दूसरे शब्दों में फ्रेंच सरकार ने न सिर्फ ‘अपुष्ट मीडिया रपटों’ को गंभीरता से लिया, बल्कि इसने जवाबदेही तय करने और अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने के लिए, जो गैरकानूनी जासूसी का शिकार हुए या हो सकते थे, स्वतंत्र तरीके से कार्रवाई की. इसके उलट भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद से कहा, ‘बेहद सनसनीखेज’ खुलासे ‘भारतीय लोकतंत्र और इसके सुस्थापित संस्थानों को बदनाम करने की कोशिश’ हैं. उन्होंने इसके बाद लीक हुए डेटाबेस को लेकर द वायर के ही सतर्कता भरे दावे का हवाला देते हुए कहा, ‘इस रिपोर्ट के प्रकाशक का कहना है कि वह यह नहीं कह सकता है कि इस प्रकाशित सूची के नंबर सर्विलांस के भीतर थे.’ साथ ही उन्होंने यह जोड़ा कि एनएसओ ने रिपोर्ट के दावों को खारिज कर दिया है.हालांकि, वैष्णव के मंत्रालय ने पेगासस प्रोजेक्ट के सवालों के जवाब में एक अहस्ताक्षरित बयान जारी किया, जिसमें इसने कहा, ‘कुछ चुनिंदा लोगों की सरकारी जासूसी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है, न ही इसमें किसी भी तरह की कोई सच्चाई है.’ मंत्री महोदय ने संसद को ऐसा कोई आश्वासन नहीं देने की सतर्कता दिखाई. आखिरकार, संसद के पटल पर दिए गए बयानों का कानूनी महत्व होता है. चूंकि मोदी सरकार ने नामों या संक्रमित पाए गए फोन की सूची से किसी तरह के संबंध से इनकार किया, और पेगासस की बिक्री सिर्फ संप्रभु निकायों की जाती है, इसकी प्रतिक्रिया में फ्रांस की प्रतिक्रिया की झलक दिखनी चाहिए थी. गौरतलब है कि फ्रांस ने एक विदेशी शक्ति द्वारा अपने नागरिकों को निशाना बनाए के आरोपों को लेकर जांच की घोषणा करने में कोई समय नहीं गंवाया. फ्रांस के उलट, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इजरायली समकक्ष को फोन नहीं किया. एनएसओ और इसके क्लाइंट की जांच का आदेश देने की बात तो दूर, मोदी के मंत्री ने वास्तव में इजरायल की कंपनी के ही बयान का हवाला उन्हीं खुलासों को ‘खारिज’ करने के लिए दिया, जिन्होंने एनएसओ और इजरायल के लिए फ्रांस में संकट खड़ा कर दिया है. उनकी सरकार संसद में पेगासस पर बहस की इजाजत देने के लिए तैयार नहीं है और इसने एक बुनियादी सवाल का जवाब देने से बचने के लिए हर जुगत लगा दी है: कि क्या किसी आधिकारिक भारतीय एजेंसी ने पेगासस की खरीद की है या उसका इस्तेमाल किया है?सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाएंइस पृष्ठभूमि में ही सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते सरकार द्वारा पत्रकारों, विपक्षी नेताओं, मानवाधिकार रक्षकों और अन्यों के खिलाफ पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल करने को लेकर जवाब की मांग करनेवाली कई याचिकाओं पर एक घंटे तक सुनवाई की. कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वालों में शामिल छह व्यक्तियों के नाम पेगासस प्रोजेक्ट के हाथ लगे लीक हुए डेटाबेस में मिले हैं. छह पत्रकारों में से दो- पत्रकार परंजॉय गुहा ठकुरता और एसएनएम अब्दी- के फोन के पेगासस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई है. भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के नेतृत्व वाली बेंच ने याचिकाकर्ताओं से उनकी याचिकाओं के समय को लेकर सवाल पूछा क्योंकि भारत में 121 लोगों के खिलाफ पेगासस के प्रयोग की पहली जानकारी 2019 में ही सामने आई थी. बेंच के जज यह भी जानना चाहते थे कि उनके पास मीडिया रिपोर्टों के अलावा और क्या सबूत है और क्यों अभी तक एक भी कथित पीड़ित ने पुलिस की साइबर शाखा में एफआईआर यानी एक आपराधिक शिकायत दायर नहीं की है. ये सब वैध सवाल हैं, भले ही किसी को यह लग सकता है कि इनके जवाब सबको मालूम हैं. वर्तमान याचिकाओं के 2019 की जगह अभी दायर किए जाने की मुख्य वजह यह है कि कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले कुछ लोगों को अपने निशाना बनाए जाने की जानकारी पिछले महीने पेगासस प्रोजेक्ट की रपटों के प्रकाशन के बाद ही हुई है. इसके अलावा, 2019 के उलट इस बार जिस बड़े पैमाने पर लोगों को निशाना बनाये जाने की बात सामने आई है और (फॉरेंसिक जांचों के माध्यम से) पेगासस के इस्तेमाल के सबूत ने इस सर्विलांस को एक न टाला जा सकने वाला मसला बना दिया है. जहां तक सबूत का सवाल है, कोर्ट की शरण में जानेवाले कम से कम दो लोगों के पास एमनेस्टी इंटरनेशनल की टेक्निकल लैब द्वारा तैयार की गई फॉरेंसिक रिपोर्ट है, जिससे उनके फोन में पेगासस की उपस्थिति की पुष्टि होती है. कुल मिलाकर भारत के 13 और दुनियाभर में 40 से ज्यादा ऐसे फोन हैं, इनमें फ्रांस के तीन स्मार्टफोन भी शामिल हैं, जिनकी जांच फ्रांसीसी सरकार ने की है. इन फोन के आधिकारिक तौर पर जांच किए जाने से पहले ही फ्रांस सरकार ने कदम उठाते हुए जांच की घोषणा कर दी थी और इजरायल से स्पष्टीकरण की मांग कर चुकी थी. एफआईआर का हौवाजहां तक एफआईआर का सवाल है, हमें खुद को यह याद दिलाना चाहिए कि भारत में 19 लोगों ने नवंबर, 2019 में सरकार को उनके खिलाफ पेगासस के इस्तेमाल की शिकायत करते हुए चिट्ठी लिखी थी. ऐसा उन्होंने वॉट्सऐप द्वारा उन्हें उनके फोन के हैक किए जाने की सूचना दिए जाने के बाद किया था.मालूम होता है कि उनकी शिकायत की पावती भी नहीं दी गई. न ही सरकार ने, जिसके पास फोन हैकिंग के मामले की जांच कराने का आदेश देने की शक्ति थी और जो उसका दायित्व था, इस मामले की जांच करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. क्या मिलावटी दवाई खाने के कारण दर्जनों लोगों के बीमार पड़ जाने की स्थिति में सरकार उनमें से हरेक द्वारा पुलिस स्टेशन में व्यक्तिगत शिकायत दर्ज कराए जाने तक इंतजार करती है? या पुलिस उसके उत्पादक के खिलाफ तुरंत हरकत में आ जाती है? मगर 19 फोन की हैकिंग को लेकर आधिकारिक प्रतिक्रिया उल्लेखनीय ढंग से हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वाली थी- और इसके कारण का अंदाजा लगाना कोई कठिन काम नहीं है. पेगासस की निर्माता कंपनी एनएसओ समूह ने एक कैलिफोर्नियाई कोर्ट को बताया है (जहां वॉट्सऐप ने इसके खिलाफ एक मुकदमा दायर किया है) कि यह अपने स्पायवेयर को सिर्फ सरकारों को बेचती है. इस अंडरटेकिंग के मद्देनजर यह मानना तार्किक है कि भारत में पेगासस के निशाने सरकारी एजेंसियों द्वारा चुने गए हैं. इस पृष्ठभूमि में और जिस बड़े पैमाने पर सिविल सोसाइटी के लोगों को निशाना बनाया गया, उसके मद्देनजर यह उम्मीद करना बेमानी है कि कानून की ‘सामान्य’ प्रक्रिया पीड़ितों के सवालों का भी कोई जवाब दे सकती है, न्याय करने की बात तो जाने ही दीजिए. आसान शब्दों में कहा जाए, तो न्यूज रपटों के अलावा पर्याप्त सत्यापन योग्य सूचनाएं मौजूद हैं, जिनसे यह संकेत मिलता है कि हमारे सामने मामला ऐसे व्यक्तियों की जासूसी करने के लिए बहुत बड़े पैमाने के गैर कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करने का है, जिन्हें संभवतः राष्ट्रीय सुरक्षा या लोक-व्यवस्था के लिए खतरा नहीं माना जा सकता है. फिलहाल इस मामले की स्थिति यह है: 1. सरकार ने 2019 में संसद में वॉट्सऐप द्वारा भारत में 121 व्यक्तियों को पेगासस का निशाना बनाए जाने की सूचना देनेवाली चिट्ठी मिलने की बात को स्वीकार किया था. 2. सरकार यह स्वीकार या इनकार करने के लिए तैयार नहीं है कि इसने पेगासस को खरीदा और इसका इस्तेमाल किया. 3. पेगासस परियोजना के फोरेसिंक परिणाम हमारे सामने हैं. 4. फ्रेंच सरकार के अपने फॉरेंसिक टेस्ट के नतीजे हमारे सामने हैं. 5. एनएसओ समूह ने पेगासस के दुरुपयोग की रपटों के बाद उन देशों में जहां जांच लंबित है, पेगासस के संचालन को ‘स्थगित’ कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं की दलील है कि किसी आधिकारिक एजेंसी द्वारा लंबे समय से व्यवस्थित तरीके से मौलिक अधिकारों का हनन किया गया है. तथ्य यह है कि प्रशांत किशोर और एमके वेणु के फोन की फॉरेंसिक जांच से पता चला है कि उनके खिलाफ पेगासस का इस्तेमाल काफी हाल में जून-जुलाई, 2021 में किया गया. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों को गंभीर मानते हुए कहा है कि सच्चाई को सामने लाना अनिवार्य है. राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित सरकार की किसी भी वैध चिंता को आसानी से याचिकाकर्ताओं द्वारा मांग की जा रही न्यायिक जांच के दायरे से बाहर रखा जा सकता है. लेकिन कानून के नियम से चलने वाले किसी भी लोकतंत्र या समाज में सरकार द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों, वकीलों, कोर्ट के अधिकारियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, यौन शोषण के पीड़ितों तथा अन्यों के खिलाफ अतिक्रमणकारी सर्विलांस को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. वह भी निजी राजनीतिक फायदे हासिल करने के लिए सार्वजनिक खजाने से खरीदे गए स्पायवेयर का इस्तेमाल करके. इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की ‘हिफाजत’ करना नहीं कहा जा सकता है. यह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार है और कुछ नहीं.Share this story

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