मनोज और बबली murder case हैवानियत परिवार के लोगों की ऐसी साजिश जिसे दहल गया हरियाणा
कैथल /अटल हिन्द /राजकुमार अग्रवाल
23 जून 2007, हिसार के नारनौद के पास खेड़ी चोकटा गांव में एक आदमी को नजर बाल समाध नहर के किनारे एक सफेद बोरी पर पड़ी. पास गया तो सड़ी-गली लाश की बदबू आई. उसने देखा कि कीड़े रेंग रहे थे. थोड़ा और पास गया तो दूसरी लाश दिखी. वह डर गया और भागता हुआ नारनौद थाने पहुंचा. उसने SHO विनोद कुमार को बताया, ‘नहर किनारे दो लाशें पड़ी हैं.’ SHO अपनी टीम के साथ 4 बजे नहर पहुंचे. लाशों की तस्वीरें लीं और उन्हें थाने ले आए. पोस्टमार्टम के बाद लाशें मॉर्च्युरी में रखी गईं. कई दिन तक कोई दावेदार नहीं आया, तो पुलिस ने उन्हें लावारिस मानकर दाह-संस्कार कर दिया.
3 दिन बाद, 26 जून 2007, सुबह 9 बजे. करनाल के बुटाना थाने के इंस्पेक्टर अमरदास ने स्कॉर्पियो के मालिक राजेश के घर छापा मारा. पुलिस ने लड़की के रिश्तेदारों के फोन नंबर और कॉल डिटेल्स खंगाली.1 जुलाई को पुलिस ने लड़की के भाई सुरेश, चाचा राजेंद्र और ममेरे भाई गुरदेव को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन मामा बारूराम और ममेरे भाई सतीश भी पकड़े गए.
इंस्पेक्टर ने सुरेश से पूछा, ‘मनोज और लड़की को किसने मारा?’
सुरेश ने बिना डरे कहा, ‘मैंने.’
इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘क्यों?’
सुरेश बोला, ‘उनका गोत्र एक था. वे भाई-बहन जैसे थे. उनकी शादी हम कैसे बर्दाश्त करते? मनोज को मना किया था, लेकिन वह नहीं माना. उसने हमारे परिवार की इज्जत मिट्टी में मिला दी. इसलिए दोनों को मार दिया.’ इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘मनोज को कैसे मारा?. राजेंद्र बोला, ‘रस्सी से बांधकर गर्दन तोड़ दी. दोनों की लाश नहर में फेंक दी.’
पुलिस खेत गई और मारुति कार बरामद की. गाड़ी की सफाई में लड़की की पाजेब के घुंघरू और मनोज-लड़की की फटी फोटो मिली. उसी दिन SHO सुभाष ने IPC की धारा 364 यानी अपहरण करने, 302 यानी कत्ल, 201 यानी सबूत मिटाने, 120-B यानी आपराधिक साजिश रचने की FIR दर्ज कर ली. केस की गुत्थी खुल चुकी थी, लड़की के भाई, मामा और ममेरे भाई ने ही लड़की बबली और मनोज को मौत के घाट उतारा था. हत्या का कारण सिर्फ ये था कि दोनों लड़का-लड़की एक ही गोत्र के थे और रिश्ते में भाई और बहन लगते थे.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 25 मार्च 2010 को करनाल सेशन कोर्ट की जज वाणी गोपाल शर्मा ने सुरेश, राजेंद्र, बारूराम, सतीश, गुरदेव, गंगाराज और ड्राइवर मनदीप को दोषी ठहराया. 30 मार्च 2010 को जज ने फैसला सुनाया. जज ने कहा, ‘मनदीप को पता था कि सभी मनोज और लड़की को किडनैप करने जा रहे हैं. उसने उनकी बर्बरता देखी, फिर भी कुछ नहीं किया. उसे 7 साल की सजा.’ गंगाराज को उम्रकैद मिली. सुरेश, राजेंद्र, बारूराम और गुरदेव को फांसी की सजा सुनाई गई.
हम बात कर रहे है हरियाणा के कैथल जिले में साल 2007 में हुई मनोज और बबली की हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। यह भारत का पहला ऑनर किलिंग केस था जिसमें अदालत ने दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। इस घटना ने समाज में चल रही गोत्र और जाति आधारित मानसिकता पर सवाल खड़े कर दिए थे ।
कौन थे मनोज और बबली?
मनोज और बबली, दोनों हरियाणा के करौरा गांव के रहने वाले थे और एक ही गोत्र (बनवाला) से ताल्लुक रखते थे। गांव के रिवाजों के अनुसार, समान गोत्र में शादी करना समाज और खाप पंचायत के खिलाफ माना जाता है। लेकिन इन दोनों ने अपने प्यार को प्राथमिकता दी और 2007 में चंडीगढ़ जाकर मंदिर में शादी कर ली।
शादी के बाद खतरा और अपहरण
शादी के कुछ ही दिन बाद दोनों ने अदालत से सुरक्षा की मांग की थी। लेकिन 15 जून 2007 को, बबली के परिवारवालों ने पुलिस सुरक्षा के बावजूद उन्हें अगवा कर लिया। कुछ दिन बाद, दोनों की लाशें एक नहर में बंधी हुई हालत में मिलीं। इस घटना में यह भी सामने आया कि पुलिस में तैनात एक कर्मचारी ने आरोपियों को जानकारी दी थी।
ये रहा मनोज! इसे नीचे उतारो!’
मनोज करीब 20-22 साल का था. उसके साथ बैठी लड़की, जिसकी उम्र 19 साल के आसपास थी, दुबली-पतली, गोरे रंग की थी. उसके माथे पर लाल सिंदूर और हाथों में लाल चूड़ा था. दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे बैठे थे. स्कॉर्पियो से आए लोगों ने मनोज और लड़की को घसीटते हुए बस से नीचे उतार लिया. बस में सवार कुछ लोग डर के मारे चुपचाप देख रहे थे. ड्राइवर ने घबराते हुए बस आगे बढ़ाने की कोशिश की, तभी नीचे एक लंबा-चौड़ा लड़का मनोज के पास पहुंचा. उसने मनोज के हाथ पीछे मोड़कर जकड़ लिए. इसके बाद चार-पांच लोगों ने लाठियों से मनोज को पीटना शुरू कर दिया.
एक लड़का लड़की के बाल पकड़े और सड़क पर घसीटना शुरू कर दिया. लड़की चीखी, ‘हमें छोड़ दो! हमने कुछ गलत नहीं किया!’ लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी. दो लोग उसका हाथ पकड़कर सड़क किनारे पर पटक दिया. तीन-चार लोगों ने मिलकर मनोज और लड़की के हाथ-पैर रस्सी से बांध दिए. किसी ने लड़की का दुपट्टा खींचा और उसे फाड़कर पहले लड़की का मुंह बांधा, फिर बचे हुए कपड़े को मनोज के मुंह में ठूंस दिया. दो लोग मनोज को घसीटते हुए स्कॉर्पियो के पीछे ले गए और रस्सी का एक सिरा मनोज के हाथों से और दूसरा सिरा गाड़ी से बांध दिया. लड़की को स्कॉर्पियो की बीच वाली सीट पर धकेल दिया गया.
स्कॉर्पियो तेज रफ्तार से कैथल की ओर चल पड़ी. पीछे बंधा मनोज सड़क पर घिसटने लगा. जून की गर्मी में डामर की सड़कें आग की तरह तप रही थीं. कुछ ही मिनटों में मनोज के कपड़े फट गए. उसका शरीर खून से लथपथ हो गया. यहां तक की मनोज का मांस उधड़ने लगा, लेकिन स्कॉर्पियो रुकी नहीं. 2-3 किलोमीटर बाद तीन लोगों ने मिलकर अधमरे मनोज को डिग्गी में ठूंस दिया. लड़की भी अब डर और दर्द से बेहोश हो चुकी थी
स्कॉर्पियो रुकी और सब गाड़ी से उतर गए. मनोज और लड़की को घसीटकर खेतों के बीच ले जाया गया. तभी एक मारुति कार वहां पहुंची. उसमें से दो लोग उतरे, जिनके हाथों में लाठियां थीं.
सबने मिलकर मनोज को पीटना शुरू कर दिया. किसी ने उसका हाथ पकड़ा और हाथ-पैर की उंगली तोड़ दी. तभी एक आदमी ने मनोज की गर्दन पकड़ी और जोर से मरोड़ दी. दूसरे ने लाठी उठाई और मनोज के प्राइवेट पार्ट पर डंडे मारे और फिर दूसरे आदमी ने मनोज के प्राइवेट पार्ट पर डंडा ठूंस दिया. मनोज की तेज चीख निकली और उसकी सांसे थम गईं. लड़की ने यह सब देखा, लेकिन वह कुछ कर नहीं पाई. वह जमीन पर अधमरी पड़ी थी. तभी एक 22-23 साल का लड़का आया, उसके हाथ में सल्फास की डिब्बी थी. उसने लड़की की गर्दन पकड़ी और उसके मुंह में सल्फास की डिब्बी उड़ेल दी. लड़की छटपटाने लगी, धीरे-धीरे उसके मुंह से झाग निकलने लगा और फिर सांसे थम गईं. इसके बाद मनोज और लड़की की बॉडी को नहर में फेंक दिया गया.
अदालत का ऐतिहासिक फैसला | Manoj Babli Murder Case Haryana
करनाल की जिला अदालत ने 2010 में इस केस पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया:
करनाल जिले में न्यायाधीश वाणी गोपाल शर्मा ने पांच दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। इस निर्णय के बाद पूरे प्रदेश में संदेश गया कि प्रेमियों के हत्यारों को इस तरह की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। दोषियों को सजा दिलाने के लिए मनोज की मां चंद्रपति ने 33 माह तक संघर्ष किया। इस लड़ाई में समाज का कोई भी व्यक्ति उनके साथ आने को तैयार नहीं हो रहा था, लेकिन जनवादी महिला समिति ने इस मसले को अंजाम तक पहुंचाने के लिए संघर्ष की राह चुन ली। 41 गवाह व 76 पेश के बाद करनाल की अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।
बबली के भाई, चाचा, चचेरे भाई और अन्य को फांसी की सजा मिली।
खाप नेता गंगा राज को उम्रकैद और ड्राइवर को 7 साल की सजा दी गई।
2011 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कुछ सजा को उम्रकैद में बदला और दो लोगों को बरी कर दिया।
मनोज की मां चंद्रपति देवी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जो आज भी ऑनर किलिंग पीड़ितों के लिए प्रेरणा हैं।
इस केस का समाज पर असर
यह मामला भारत में ऑनर किलिंग के खिलाफ कानूनी सख्ती का कारण बना।
चंद्रपति और सीमा (मनोज की बहन) ने निडरता से न्याय की लड़ाई लड़ी।
हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि वह पीड़ित परिवार को ₹6 लाख मुआवजा दे।
निष्कर्ष:
मनोज और बबली की प्रेम कहानी ने भारतीय समाज में गहरी छाप छोड़ी है। यह केस दिखाता है कि प्यार के रास्ते में अगर रुकावटें आती हैं, तो भी संविधान और कानून इंसाफ दिला सकता है। इनकी कुर्बानी ने समाज में बदलाव की शुरुआत की, और आने वाली पीढ़ियों को एक नई सोच दी।
मनोज-बबली हत्याकांड से फेमस हुए कैथल में ऑनर किलिंग के मामले
बालू में पिता ने ली थी बेटी की जान
साल 2023 को पुलिस ने गांव बालू निवासी दंपती पर ऑनर किलिंग का केस दर्ज किया था। आरोप था कि बालू की 18 वर्षीय युवती कुछ समय से जिला हिसार के गांव खेड़ी चोपटा निवासी रोहित के संग प्रेम प्रसंग चल रहा था। 14 सितंबर को माफी ने फोन करके रोहित को अपने गांव बुला लिया। दोनों गुप चुप तरीके से घर से जाना चाहते थे। इसकी भनक परिवार को लग गई। परिवार ने माफी को काबू करके चुन्नी से गला घोंटकर हत्या कर दी। जिसका सात-आठ लोगों की मौजूदगी में दाह संस्कार भी कर दिया गया। पुलिस ने थाने के सिक्योरिटी एजेंट की शिकायत पर केस दर्ज करके आरोपी माता-पिता को गिरफ्तार कर लिया था। जिनको न्यायिक हिरासत में भेजा जा चुका है।
पिता ने गला दबाकर बेटी को उतारा मौत के घाट
साल 2023 में गांव हजवाना में पिता ने 14 वर्षीय बेटी को रात के समय गला दबाकर हत्या कर दी। इसके शव को खुद-बुद्ध करने के लिए रात के 11:00 बजे गांव के ही श्मशान घाट में युवती के शव को जला दिया। बताते चलें कि नाबालिग के अपने ही पड़ोस में रहने वाले अनुसूचित जाति के युवक से प्रेम संबंध थे। 12 अगस्त को युवक व युवती घर से चले गए थे। पुलिस ने अगले ही दिन दिल्ली से दोनों को काबू कर लिया था। युवक को कोर्ट के आदेश पर न्यायिक हिरासत में भेज दिया था, जबकि युवती अपने मामा के घर चली गई थी। 10 दिन पहले ही वह घर लौटी थी। पिता ने 16 सितंबर की रात बेटी की गला घोंटकर हत्या कर दी और उसी दिन रात को 11 बजे अपने भाईयों के साथ मिलकर दाह संस्कार कर दिया। ग्रामीणों को बोल दिया कि बेटी ने रात को आत्महत्या कर ली थी। पूंडरी थाना के सिक्योरिटी एजेंट को गुप्त सूचना मिली तो हत्या करने, शव खुर्द बुर्द करने का केस दर्ज किया गया।
2020 में बड़सीकरी कलां में बेटी की कर दी थी हत्या
गांव बड़सीकरी में कलां में प्रेम संबंधों के चलते 15 साल की बेटी को मौत के घाट उतार दिया गया था। 6 अगस्त 2020 को कंट्रोल रूम में पुलिस को सूचना मिली कि बड़सीकरी कलां में परिवार ने बेटी की हत्या कर दी है, कुछ देर में दाह संस्कार के लिए लेकर जाने वाले हैं। पुलिस मौके पर पहुंची तो श्मशान घाट में चिता जल रही थी। जिसके पास कोई ग्रामीण नहीं था।
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बुक रिव्यूः सिहरन पैदा करती है मनोज और बबली की कहानी
किताबः मनोज और बबली
लेखिकाः चंदर सुता डोगरा
अनुवादः मधु बी. जोशी
प्रकाशकः मंजुल पब्लिशिंग हाउस
कीमतः 225 रुपये(पेपरबैक)
ये हमारे समय का सबसे भयावह सच है, जब प्रेम करने वाले जोड़ों को इज्जत और गोत्र के नाम पर पितृसत्ताशक्तियां मौत के घाट उतार देती है. पितृसत्तात्मक समाज के बनाए नियमों और कानूनों के ऊपर जाने वाले जोड़ों में से एक मनोज और बबली की कहानी भी उन्हीं में से एक मनोज और बबली की कहानी भी उन्हीं में से एक है. जिसे लिखा है चंदर सुता डोगरा ने और प्रकाशित किया है मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने