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HARYANA -मोदी की फोटो सबसे पहले तो है, मगर छोटी है

मोदी की फोटो सबसे पहले तो है, मगर छोटी है
2024 में बीजेपी का हरियाणा चुनाव अभियान अलग किस्म का है, पोस्टरों में मोदी प्रमुख चेहरा नहीं है, और लगातार दो बार सत्ता में रही बीजेपी फिर से ऊंची जातियों और पंजाबियों के भरोसे है
-राजकुमार अग्रवाल –
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हरियाणा विधानसभा के इस बार के चुनाव में दीवारों पर लिखी इबारतों को पढ़ते हुए आप उनमें कुछ बातों की गैर-मौजूदगी से या कुछ चीजों को बिलकुल गायब पाकर हैरत में पड़ सकते हैं. जैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा और नाम. उनके द्वारा किए गए वादे भी आपको कहीं नजर नहीं आएंगे. न ‘मोदी की गारंटी’, न ‘मोदी का भरोसा’.
उनकी पार्टी का चुनावी नारा है— ‘भरोसा दिल से, बीजेपी फिर से’. नारे गढ़ने के मामले में यह पार्टी अपने लिए जो ऊंचा पैमाना निश्चित करती रही है उसके मद्देनजर यह तो काफी फीका लगता है. इसके अलावा इसमें कोई लय भी नहीं है. जैसे कि, एक बैंक्वेट हॉल में आयोजित एक मामूली-सी सभा के दौरान कुछ पार्टी कार्यकर्ताओं ने अलग से बातचीत में इस नारे के बारे में कहा, “तुक भी नहीं मिलती”
दीवारों पर लिखी इबारतों में असंतोष की सबसे खुली अभिव्यक्ति कविता में नहीं बल्कि चित्रों में की गई दिखती है. ऐसा नहीं है कि मोदी बिलकुल गायब ही हैं. हुआ सिर्फ इतना है कि उनकी तस्वीर पार्टी के पोस्टरों-पर्चों पर प्रमुख तस्वीर नहीं है. अधिकतर मामलों में चुनाव क्षेत्र के पार्टी उम्मीदवार की तस्वीर ही प्रमुख है. यह लगभग 2014 के विधानसभा चुनाव वाली स्थिति है. उस दौरान अपने इस कॉलम में काँग्रेसी उम्मीदवारों के बारे में मैंने ऐसा ही कुछ लिखा था. इस बार समीकरण उलट गया है, लेकिन टुकड़ों-टुकड़ों में. उस समय कांग्रेस उम्मीदवारों ने गांधी परिवार को पूरी तरह काट दिया था. इस बार, मोदी मौजूद हैं मगर महज नाम के लिए.
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पोस्टरों के सबसे ऊपर के दाहिने कोने में मुख्यमंत्री नायाब सिंह सैनी का दाढ़ी वाला चेहरा उम्मीदवार की तस्वीर के मुक़ाबले छोटे आकार में दिखता है. सैनी को अप्रैल में शुरू हुए लोकसभा चुनाव से मात्र एक महीने पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया था, क्योंकि पार्टी को देर से एहसास हुआ था कि लगातार दो बार मुख्यमंत्री बनाए गए मनोहर लाल खट्टर कितने अलोकप्रिय हो गए थे. पोस्टरों पर सैनी के गाल से गाल सटाए एक चेहरा दिखता है जिसे हममें से अधिकतर लोग नहीं पहचानते. कम-से-कम मैं तो नहीं पहचान पाया. मैं यह भी कहूंगा कि बीजेपी की चुनावी सभाओं और जुलूसों में मैंने कई लोगों से इस चेहरे के बारे में पूछा लेकिन कुछ उम्रदराज लोगों को छोड़ शायद ही कोई इस महत्वपूर्ण शख्स का नाम बता पाया.
इनका नाम है मोहनलाल बडोली. ये कौन हैं? ये पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, जिन्हें लोकसभा चुनाव में मिले झटके के बाद नुकसान की भरपाई की कोशिश के तहत इस पद पर नियुक्त किया गया है. लोकसभा चुनाव में पार्टी को प्रदेश की 10 में से पांच सीटें गंवानी पड़ी थी. हारने वालों में बदोली भी थे, सोनीपत से. हारने के बावजूद उन्हें प्रमोशन सिर्फ उनकी जाति की वजह से दिया गया, वे ब्राह्मण हैं.
क्या यह ‘मोदी बचाओ, मोदी जिताओ’ अभियान है?
अब पार्टी इसे इस चुनाव अभियान को लेकर दीवारों पर लिखी सबसे महत्वपूर्ण इबारत के रूप में कबूल कर रही है. जिन बैनरों पर पार्टी उम्मीदवार का चेहरा सबसे बड़ा, और मुख्यमंत्री तथा प्रदेश पार्टी अध्यक्ष के चेहरे दूसरे सबसे बड़े चेहरे हों, उनमें मोदी का चेहरा सबसे छोटा है. यही नहीं, पोस्टरों के सबसे ऊपर के बायें हिस्से पर डाक टिकट आकार के 10 चेहरों की तस्वीरें हैं जिनमें पहले चार और छठे को तथा पांचवें को कुछ कोशिश करके तो मैं पहचान सका लेकिन बाकी के बारे में दूसरों से मदद मांगी. अगर आप हरियाणा सिविल सेवा की परीक्षा के परीक्षार्थी हों और आपको इन 10 में से अंतिम छह के नाम बताने के लिए कहा जाए, तो आप भी फेल कर सकते हैं.
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आइए, उनके नाम गिनाए : मोदी, पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर, केंद्रीय मंत्री तथा हरियाणा चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री और हरियाणा के उप-चुनाव प्रभारी बिप्लब देब, और राजस्थान के पार्टी प्रभारी तथा प्रमुख नेता सतीश पूनिया. बाकी चार के नाम जानने के लिए मुझे अपने सीनियर एसोसिएट एडिटर तथा हरियाणा विशेषज्ञ सुशील मानव की मदद लेनी पड़ी. लेकिन नाम में क्या रखा है?
उनमें से एक हैं पूर्व लोकसभा सदस्य जिन्हें इस बार टिकट नहीं दिया गया लेकिन वे पंजाबी हैं; दूसरे हैं यमुना पार यूपी से राज्यसभा सांसद जिन्हें अपने गुर्जर वोटरों को लामबंद करने के लिए बुलाया गया है; तीसरी हैं प्रदेश महिला मोर्चा की लगभग अनजान कार्यकर्ता, लेकिन वे बनिया हैं; और चौथे हैं भाजपा के उतने ही अनजान जिला पार्टी पदाधिकारी.
इन उल्लेखनीय हस्तियों के बीच मोदी फिलहाल की अपनी पसंदीदा टोपी में भी नजर आते हैं, जिनकी तस्वीर भी उतनी ही छोटी है. बस वे बराबर वालों में सबसे पहले स्थान पर हैं, मानो आप उन्हें इस चुनाव के प्रतिकूल नतीजे के लिए जिम्मेदार बताने से बचाना चाहते हैं लेकिन उनके नाम पर वोट जरूर हासिल करना चाहते हैं. ऐसे में क्या हम इस अभियान को ‘मोदी बचाओ, मोदी जिताओ’ अभियान नाम दे सकते हैं?
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हरियाणा की राजनीति के लिए जो-जो जरूरी हुआ करता था— जाति, परिवारवाद, और दलबदल—इन सब पर मोदी का वर्चस्व हावी हो गया था मगर अब यह सब वापस आ गया है. 2003 से शुरू हुए ‘हरियाणा की दीवारों पर लिखी इबारतें’ का यह चौथा संस्करण है, और पूरी सीरीज़ को आप यहां पढ़ सकते हैं. 2014 में इसके दूसरे संस्करण में, मोदी के नेतृत्व में आकांक्षाओं तथा आत्मविश्वास के विस्फोट पर नजर रखते हुए मैंने कहा था कि ऐसा लगता है मानो हरियाणा के मतदाताओं ने पहचान की राजनीति को पीछे छोड़ दिया है. कभी 25 लाख की आबादी वाले देश के सबसे अमीर प्रदेश से आप यही अपेक्षा रख सकते थे. यह स्थिति पूरे एक दशक तक रही. लेकिन मोदी की कमजोर पड़ती ताकत के साथ अब यह खत्म हो गया है.
बीजेपी ने एक ब्राह्मण, और हाल में ही पराजित एक नेता को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. जबकि इस राज्य में इस जाति वालों की आबादी 7.5 फीसदी से अधिक नहीं है. प्रदेश में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि पार्टी के 90 में से 11 उम्मीदवार ब्राह्मण हैं. यानी अगर दूसरों पर भरोसा नहीं है तो अपनों को ही आगे बढ़ाओ. दो छोटे-छोटे गठबंधन सामने आए हैं. दोनों में देश के सबसे प्रमुख दलित नेता शामिल हैं—चंद्रशेखर आज़ाद, दुष्यंत चौटाला के साथ हैं, तो मायावती दुष्यंत के चाचा अभय की ‘आइएनएलडी’ के साथ हैं. आप साजिश की चर्चाओं को खारिज करना चाह सकते हैं, लेकिन जाट-दलित के ये अस्वाभाविक, छोटे गठबंधन कांग्रेस की कीमत पर ही वोट हासिल करेंगे. तो अब इस मुक़ाबले को बीजेपी के जाट विरोधी गठजोड़ बनाने की कोशिश, और जाट वर्चस्व को कमतर बताने की काँग्रेस की कोशिश के बीच मुक़ाबला बताया जा सकता है. शहरी जातियां जाट वर्चस्व से डरती हैं. इस मुक़ाबले में दोस्ताना, सौम्य हुड्डा को मोर्चे पर आगे रखना निर्णायक साबित हो सकता है.(साभार-दिप्रिंट)
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