देवेश रंजन जिस अमेरिकी यूनिवर्सिटी के छात्र उसी यूनिवर्सिटी में बने डीन
177 साल में पहली बार किसी भारतीय को मिला है यह ऐतिहासिक पद
सामान्य स्कूल छात्र से लेकर अमेरिका के शीर्ष तकनीकी संस्थान का नेतृत्व
एशियाई मूल के पहले और सबसे युवा (43 वर्ष ) डीन पटना से विश्व मंच तक
भारत के छोटे शहरों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए एक आशा की किरण- विश्वास

अटल हिन्द ब्यूरो /फतह सिंह उजाला
प्रोफेसर देवेश रंजन (Professor Devesh Ranjan)को यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन–मैडिसन(University of Wisconsin–Madison) के इंजीनियरिंग कॉलेज के 10वें डीन के रूप में नियुक्त किया गया है। यह नियुक्ति कई मायनों में ऐतिहासिक है — वे इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के 177 वर्षों के इतिहास में पहले एशियाई मूल के व्यक्ति और अब तक के सबसे युवा (43 वर्ष की उम्र में) डीन बने हैं। पटना, बिहार में जन्मे और पले-बढ़े देवेश रंजन की यात्रा एक सामान्य स्कूल छात्र से लेकर अमेरिका के शीर्ष तकनीकी संस्थान के नेतृत्व तक पहुँची है । यह यात्रा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि भारत के छोटे शहरों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए एक आशा की किरण भी है।
देवेश की उत्कृष्टता से भरी यात्रा

देवेश रंजन ने अपनी स्कूली शिक्षा पटना में पूरी की और फिर 2003 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (NIT), तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उसी वर्ष उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन–मैडिसन में मास्टर्स के लिए प्रवेश लिया, जहां से उनकी वैश्विक अकादमिक यात्रा शुरू हुई। उन्होंने 2005 में मास्टर्स और 2007 में पीएचडी पूरी की, जो प्रसिद्ध प्रोफेसर रिकार्डो बोनानज़ा के मार्गदर्शन में थी। 2008 में उन्हें लॉस एलामोस नेशनल लेबोरेटरी में डायरेक्टर पोस्टडॉक्टोरल फेलोशिप प्राप्त हुई – जो अमेरिका की शीर्ष वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में से एक है। दुनिया का पहला एटम बम ( मैनहट्टन प्रोजेक्ट) यहीं बना था। 2009 में उन्होंने टेक्सास A&M यूनिवर्सिटी में फैकल्टी के रूप में कार्यभार संभाला और 2014 में जॉर्जिया टेक में शामिल हुए। वहां उन्होंने जॉर्ज डब्ल्यू. वुडरफ स्कूल ऑफ मैकेनिकल इंजीनियरिंग में प्रोफेसर और यूजीन सीक्वेलिन जूनियर स्कूल चेयर के रूप में कार्य किया। उनके नेतृत्व में यह अमेरिका का सबसे बड़ा और शीर्ष रैंकिंग मेकैनिकल इंजीनियरिंग स्कूल बन गया। जिसमें 3,000 से अधिक छात्र और 95 से अधिक फैकल्टी कार्यरत हैं।
जहां युवा मास्टर्स छात्र उसी यूनिवर्सिटी के डीन बने

16 जून 2003 को, देवेश रंजन एक युवा मास्टर्स छात्र के रूप में पहली बार मैडिसन पहुँचे थे। ठीक 22 साल बाद, 16 जून 2025 को, वे उसी यूनिवर्सिटी में डीन के रूप में लौटे हैं — इस बार एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक और शैक्षिक नेता के रूप में। उनके पीएचडी गाइड प्रोफेसर रिकॉर्डो बोनान्जा, अभी भी वहाँ प्रोफेसर हैं । उनका शोध तेज़ गति में फ्लूइड डायनेमिक्स, ऊर्जा प्रणालियाँ, और ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्रों में अग्रणी है। उन्होंने अब तक 25 पीएचडी छात्रों का मार्गदर्शन किया है और उन्हें कई प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोध पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 2013 में उन्हें नेशनल साइंस फाउंडेशन कैरियर अवॉर्ड और यूएस एयरफोर्स यंग इन्वेस्टिगेटर अवॉर्ड मिला। 2016 में वे यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी अर्ली करियर अवॉर्ड पाने वाले जॉर्जिया टेक के पहले प्रोफेसर बने। 2021 में उन्हें अमेरिकन सोसाइटी ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स (ASME) का फेलो नामित किया गया और 2023 में जस्टिस एंड लार्सन मेमोरियल अवॉर्ड से नवाज़ा गया।
विस्कॉन्सिन मैडिसन यूनिवर्सिटी एक ग्लोबल इंस्टिट्यूट

यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन–मैडिसन अमेरिका का एक ऐतिहासिक और अग्रणी सार्वजनिक विश्वविद्यालय है। इसके पूर्व छात्रों और संकाय सदस्यों में 20 नोबेल पुरस्कार विजेता, 41 पुलित्जर पुरस्कार विजेता, 2 फील्ड्स मेडलिस्ट, और 1 प्रेसिडेंशियल फ्रीडम अवॉर्ड विजेता शामिल हैं।
इसके छात्रों और पूर्व छात्रों ने 50 ओलंपिक पदक जीते हैं, जिनमें 13 स्वर्ण पदक भी शामिल हैं।
यूनिवर्सिटी के प्रोवोस्ट चार्ल्स इसबेल जूनियर ने रंजन के स्वागत में कहा, “हम भाग्यशाली हैं कि प्रोफेसर रंजन जैसे ऊर्जावान और दूरदर्शी इंजीनियर को मैडिसन वापस ला सके। उनका लोगों के प्रति समर्पण और दूसरों की सफलता के लिए रास्ता बनाना, हमारे इंजीनियरिंग कॉलेज के विकास के इस दौर के लिए बिल्कुल उपयुक्त है।”
कोरोना काल में सबसे सस्ता वेंटिलेटर बनाया
देवेश रंजन की उपलब्धियाँ केवल शिक्षण और शोध तक सीमित नहीं हैं। कोरोना महामारी के दौरान, उन्होंने अपनी पत्नी डॉ. कुमुदा के साथ मिलकर दुनिया का सबसे सस्ता वेंटिलेटर तैयार किया था।
इस वेंटिलेटर को विशेष रूप से भारत सहित उन विकासशील देशों के लिए डिजाइन किया गया था जहां मेडिकल संसाधनों की भारी कमी थी। उनका उद्देश्य था कि कोई भी मरीज केवल इसलिए जान न गंवाए क्योंकि उसके पास जीवन रक्षक उपकरण उपलब्ध नहीं है।
शिक्षा और जनसेवा की विरासत का विस्तार

प्रोफेसर देवेश रंजन का परिवार राजनीतिक और शैक्षणिक सेवा की मजबूत परंपरा से जुड़ा है। उनकी भाभी, श्रीमति पर्ल चौधरी, हरियाणा कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री हैं और सामाजिक न्याय तथा शिक्षा के मुद्दों पर मुखर रहती हैं। पर्ल चौधरी ने कहा “देवेश की पटना से लेकर मैडिसन तक की यात्रा हर उस छात्र के लिए प्रेरणा है, जो सीमाओं से आगे सपने देखता है। यह न केवल हमारे परिवार, बल्कि बिहार, हरियाणा, तमिलनाडु और समूल भारत के लिए गर्व का क्षण है।” सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट पर्ल चौधरी के पिता स्व. भूपेंद्र चौधरी 2005 में हरियाणा की पटौदी विधानसभा से विधायक थे। उनके पिता जी के सगे मामा स्व. शिवलाल जी भी इसी क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। चौधरी परिवार ने हमेशा शिक्षा को प्राथमिकता दी है — परिवार के कई सदस्य IIT दिल्ली, IIM कलकत्ता, IIFT दिल्ली, NIT कुरुक्षेत्र जैसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय संस्थानों और अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों से शिक्षित हैं। पर्ल चौधरी की बेटी समिका रंजन ने 2023 की बारहवीं कक्षा के ISC बोर्ड में 99.5% अंकों के साथ राष्ट्रीय टॉपर्स में स्थान प्राप्त किया था और वर्तमान में जॉर्जिया टेक, अमेरिका से कंप्यूटर साइंस में स्नातक कर रही हैं।
सपने देखो, उन्हें साकार करने के लिए डट जाओ
प्रोफेसर देवेश रंजन, अब पब्लिक आईवी लीग कहे जाने वाले उस कॉलेज के प्रमुख बन गए हैं। जो दुनिया की अगली पीढ़ी के इंजीनियरों को आकार देगा। उनका जीवनवृत्त यह दर्शाता है कि कैसे एक मध्यमवर्गीय भारतीय छात्र, मेहनत, लगन और शिक्षा के बल पर वैश्विक नेतृत्व की भूमिका में पहुँच सकता है। यह हकीकत संभावनाओं, समर्पण और प्रेरणा की है — और यह भारत के हर युवा के लिए एक स्पष्ट संदेश है – सपने देखो, और उन्हें साकार करने के लिए डट जाओ।
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