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चक्रव्यूह में “उलझ” गया भूपेंद्र हुड्डा परिवार

चक्रव्यूह में “उलझ” गया भूपेंद्र हुड्डा परिवार,हार के बड़े नुकसान से “डरा” हुआ हुड्डा परिवार

फरीदाबाद, गुरुग्राम और मानेसर नगर निगम चुनाव में भागीदारी को लेकर हुड्डा परिवार “असमंजस” में

चंडीगढ़। हाल ही में संपन्न हुए स्थानीय निकाय चुनाव में भागीदारी नहीं करने वाली हरियाणा कांग्रेस के लिए एक बार फिर नई “मुसीबत” सामने आ खड़ी हुई है।
कुछ ही समय बाद होने वाले फरीदाबाद गुरुग्राम और मानेसर नगर निगम चुनाव को लेकर हरियाणा कांग्रेस इस बड़ी “उलझन” में पड़ गई है कि चुनाव सिंबल पर लड़ा जाए या नहीं लड़ा जाए।
इस समय हरियाणा कांग्रेस की कमान एकतरफा हाथ में होने के कारण भूपेंद्र हुड्डा परिवार के लिए तीनों नगर निगम चुनाव सियासी महाभारत नजर आ रहा है।
इस सियासी महाभारत में सिंबल पर चुनाव लड़ना हुड्डा परिवार के लिए चक्रव्यूह से कम नहीं है।
सबसे बड़ी दिक्कत इस बात की है कि हुड्डा परिवार को चक्रव्यूह में घुसना तो आता है लेकिन जीत के साथ बाहर निकलने को लेकर वह निश्चित नहीं है।
हुड्डा परिवार की आशंका के “जायज” कारण हैं। हुड्डा परिवार इस समय एक एक कदम फूंक कर रख रहा है और विरोधियों को कोई ऐसा मौका नहीं देना चाहता जिससे उसकी कमजोरी जाहिर हो।
राज्यसभा चुनाव में करारी मात मिलने से हुड्डा परिवार की सियासत को बड़ा झटका लगा है।
उसके बाद स्थानीय निकाय चुनाव में समर्थन दिए गए सभी प्रत्याशियों के हार जाने के कारण भी हुड्डा परिवार बेहद परेशान है।
ऐसे में फरीदाबाद, गुरुग्राम और मानेसर नगर निगम चुनाव में सिंबल पर पार्टी की भागीदारी को लेकर हुड्डा परिवार उलझन में पड़ा हुआ है।
हुड्डा परिवार यह बखूबी जानता है कि तीनों नगर निगम चुनाव में पार्टी सिंबल पड़ने पर अगर जीत हासिल हुई तो उन्हें बहुत बड़ा सियासी फायदा होगा लेकिन इसके साथ-साथ उन्हें इस बात का आभास भी है कि अगर पार्टी हार गई तो सारा ठीकरा उनके सिर पर ही छोड़ा जाएगा और उनकी अगुवाई में पार्टी की सत्ता में वापसी पर बड़ा सवालिया निशान लग जाएगा।
इसीलिए तीनों नगर निगम चुनाव में भागीदारी को लेकर हुड्डा परिवार चिंतन के दौर से गुजर रहा है।
बात यह है कि फरीदाबाद गुरुग्राम और मानेसर नगर निगम के चुनाव हरियाणा की पॉलिटिक्स पर बड़ा असर डालने का काम करेंगे। 5 साल पहले भी इन्हीं नगर निगम चुनाव में जीत हासिल करने के बाद बीजेपी ने सत्ता में दूसरी बार वापसी की ताल ठोकी थी।
बीजेपी, जेजेपी और इनेलो के साथ आम आदमी पार्टी भी सिंबल पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। सिर्फ कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जो अभी तक इसके बारे में फैसला नहीं ले पाई है।
हुड्डा परिवार इस समय जीत का बड़ा फायदा लेने की बजाय हार के नुकसान से ज्यादा डरा हुआ है। इसलिए नगर निगम चुनाव में पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ने को लेकर वह अभी तक फैसला नहीं ले पाया है।
यह सच्चाई है कि नगर निगम चुनाव हुड्डा परिवार के लिए दोधारी तलवार के समान है।
अगर सिंबल पर चुनाव लड़कर पार्टी जीतती है तो पार्टी को जोरदार सियासी फायदा होगा लेकिन अगर पार्टी चुनाव हारती है तो हुड्डा परिवार को बड़ा सियासी नुकसान होगा।
अब देखना यही है कि हार की आशंका को परे रखकर हुड्डा परिवार तीनों नगर निगम चुनाव में पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटा पाता है या नहीं…

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