सूत्रों के नाम पर धांधली
पहले के सूत्रों और अब के सूत्रों में अंतर
सूत्रों के हवाले से पहले भी खबरें छपती थीं। लेकिन तब वो सच्ची खबरें होती थीं(Difference between earlier sources and present sources)। उन खबरों के सच होने का प्रतिशत 99 से भी ज्यादा होता था। कई बार अखबार ये लिख भी देते थे कि पार्टी या सरकार के जिस व्यक्ति ने ये खबर दी है वो नहीं चाहता कि उसका नाम जाहिर किया जाए। इसलिए उसका नाम नहीं दिया जा रहा है। तब संवाददाता अपनी जिम्मेदारी पर उस खबर को ब्रेक करता था। खबर गलत होने या कोई विवाद होने पर वह उसकी जिम्मेदारी भी लेता था। कुछ मामलों में वह सजा भी भुगत लेता था लेकिन अपना स्रोत नहीं बताता था। लेकिन अब संवाददाता जानता है कि चूंकि सरकार के लोग ही उसे सूचना दे रहे हैं तो बात बिगड़ने पर या खबर गलत होने पर भी उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी। अधिक से अधिक खंडन छापकर ही जान बच जाएगी। ज्यादातर मामलों में तो वो भी नहीं करना पड़ता।Fraud in the name of sources
हाल के वर्षों में ऐसे कई मामले हुए हैं जिनकी उन्हीं सत्ताधारी दलों और उनके नेताओं के कहने पर खबरें चलाई गईं और गलत होने पर माफी मांगने तक की भी जरूरत नहीं महसूस की गई। उसी का नतीजा है कि नोट में चिप लगाने से लेकर जाने कैसी-कैसी बेतुकी खबरें चलाई गईं। अब तो कांग्रेस के कई प्रवक्ताओं ने यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि चैनलों और अखबारों के सूत्र पीएमओ में बैठा एक अधिकारी है। उसी के कहने पर बिना सूत्र बताए बिना गलत खबरें भी चलाई जाती हैं।
पहले इस तरह की स्थितियां कम होती थीं। यदा कदा इस तरह की खबरें प्लांट होती थीं। बाद में इसका प्रचलन बढ़ाने में भी बीजेपी का बड़ा योगदान है। जब कांग्रेस की सरकार थी तो एक वरिष्ठ पत्रकार, जिन्हें बाद में बीजेपी ने राज्य सभा में भेजा, आईएनएस पर पहुंच जाते थे और कुछ पत्रकारों को एक्सक्लूसिव के नाम पर अलग-अलग खबरें प्लांट कराते थे। लेकिन वो एक ही खबर सारे पत्रकारों को नहीं बताते थे, बल्कि सबको अलग-अलग खबरें बताया करते थे। तब आईएनएस के सामने चाय की दुकान पर ज्यादातर पत्रकार जुटते थे। शाम को जैसे ही वो पत्रकार महोदय पहुंचते थे, जानकार उन्हें देखकर मुस्कराते थे और साथी पत्रकारों से कहते थे कि अब आ गये हैं। खबरें प्लांट होंगी। पर अब तो यह आम हो गया है। संस्थागत रूप से खबरें प्लांट कराई जा रही हैं। वह भी बिना सामने आए।
खबरों के अलावा और भी तरह की गलत सूचनाएं दी जा रही हैं। करीब तीन साल पहले मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा, तुम्हें कितनी पेंशन मिलती है ? मैंने कहा, “कुछ भी नहीं, एक पैसा भी नहीं”। तो तुम फॉर्म क्यों नहीं भरते ? मोदी जी ने पत्रकारों के लिए 20 हजार पेंशन की व्यवस्था की है। फॉर्म भरो और लाभ उठाओ। मेरी आंखें चमक उठीं। अगर बुढ़ापे में 20 हजार रुपया मिलने लगे तो बेटे, रिश्तेदार या किसी परिचित के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा। मैंने उनसे पूछा कि फॉर्म कहां मिलेगा ? उन्होंने जवाब दिया – केंद्र सरकार की साइट पर देख लेना। उनकी बात सुनकर मुझे अच्छा लगा लेकिन थोड़ा संदेह भी हुआ। मेरे जितने पुराने जानकार हैं सभी को पेंशन मिलती है। किसी को 12 सौ, किसी को 18 सौ, अधिक से अधिक 32 सौ की पेंशन मैंने सुनी है। मैंने अपनी शंका उनसे जाहिर की। नाम ले लेकर सबकी पेंशन के बारे में उन्हें बताया तो उन्होंने कहा कि उन्हें मालूम नहीं होगा। वरना वो भी फॉर्म भरते तो उन्हें भी बीस हजार रुपये की पेंशन मिलती। तुम मेरे करीबी हो, इसलिए तुम्हें मैंने बता दिया। उनके जवाब से मेरा संदेह और बढ़ गया। क्योंकि जिन लोगों की मैं बात कर रहा था वे अपनी कम पेंशन को लेकर चिंतित रहते थे और जब भी बात होती थी कहते थे सरकार को कम से कम इतनी व्यवस्था तो करनी चाहिए जिससे वृद्धावस्था ठीक-ठाक कट जाए।
जो मुझे बीस हजार पेंशन की सलाह दे रहे थे वे खुद पत्रकारिता की नौकरी से रिटायर हुए थे। मैंने उनसे पूछा, आपको कितनी पेंशन मिलती है ? उन्होंने कहा, मेरी बात छोड़ो। आपने फॉर्म नहीं भरा ? मैंने पूछा। जवाब दिया- नहीं। आपको जरूरत नहीं है? नहीं। शक काफी बढ़ गया। बाद में मैंने उनके कथन की जांच की। पता चला ऐसा कहीं कुछ नहीं है। किसी ने बताया कि कुछ लोग मोदी सरकार के समर्थन में यूं ही झूठ फैला रहे हैं। लोगों को बता रहे हैं कि मोदी सरकार ने तो आम लोगों के लिए बहुत कुछ कर दिया है। अब अगर लोग ही जागरूक न हों तो उसमें सरकार क्या करे। आप अगर मिल रही सहूलियत भी नहीं ले सकते तो इसमें मोदी सरकार क्या कसूर ?(लेखक अमरेंद्र कुमार राय वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)