हर वर्ष स्कूल में बच्चों के दाखिले का महीना अप्रैल आते ही अभिभावकों की प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ शिकायतें आनी शुरू हो जाती हैं। कोई कहता है कि ये अधिक फीस ले रहे हैं, कोई कहता है कि ये एनसीईआरटी की किताबों के स्थान पर प्राइवेट पब्लिशर्ज की किताबें लगवा रहे हैं, कोई कहता है कि ये स्कूल में ही किताबें और वर्दियां बेच रहे हैं, कोई कहता है कि ये सप्ताह में दो-दो वर्दियां लगवा रहे हैं, कोई कहता है कि ये हर वर्ष वर्दियां बदल देते हैं आदि-आदि । मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री एक दो बयान जारी करके कि स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाई जाएं, अभिभावक एक ही दुकान से पुस्तकें खरीदने के लिए बाध्य नहीं है और स्कूल शिक्षा विभाग एक दो निर्देश जारी करके फारिग हो जाता है और मामला अगले वर्ष तक के लिए ठंडे बस्ते में चला जाता है। मामले की तह तक जाने की कोशिश न अभिभावक करते हैं और न ही सरकार करती है कि इन सभी समस्याओं का कारण प्राइवेट स्कूलों के नाम पर चल रहा व्यापार है । हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में दिल्ली पब्लिक स्कूल(डीपीएस) द्वारका को कड़ी फटकार लगाते हुए साफ कहा कि छात्रों को संपत्ति समझने वाले ऐसे स्कूलों को बंद कर दिया जाना चाहिए । जस्टिस सचिन दत्ता की एकल पीठ ने कहा कि स्कूल केवल पैसा बनाने की मशीन बन गए हैं । यदि सरकार वास्तव में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाना चाहती है तो उसे इन स्कूलों को नियन्त्रित करने वाले कानूनों और नियमों में संशोधन करना होगा ।
इस समय प्रदेश में दो तरह के प्राइवेट स्कूल हैं । एक प्राइवेट स्कूल तो वे प्राइवेट स्कूल हैं जो धर्मार्थ और समाज सेवी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे हैं । दूसरे किसी व्यक्ति विशेष, व्यक्तियों के समूह, फर्म, निजी ट्रस्ट या किसी कंपनी द्वारा चलाए जा रहे प्राइवेट स्कूल हैं । देश जब अंग्रेजों का गुलाम था तब शिक्षा बहुत थोड़े लोगों को उपलब्ध थी । शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के लिए उस समय बहुत से धर्मार्थ और समाजसेवी संगठन जैसे आर्य समाज, सनातन धर्म और देव समाज आदि ने बहुत से स्कूल कॉलेज खोलकर शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया । क्योंकि ये प्राइवेट स्कूल समाज-सेवा के लिए खोले गए थे इसलिए इनमें शिक्षा सरकारी स्कूलों से तो महंगी थी लेकिन फिर भी ज्यादा महंगी नहीं थी ।Private schools do business, parents look helpless
देश आजाद हुआ, नया संविधान लागू हुआ, लेकिन इसमें कहीं भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया कि देश के नागरिकों को किस स्तर तक पढ़ाने-लिखाने की जिम्मेदारी सरकार की है । इसमें देश के नागरिकों के शिक्षा पाने के अधिकार को मौलिक अधिकारों में स्थान नहीं मिल पाया । इसमें राज्य की नीति के निर्देशक सिधान्तों के अधीन अनुच्छेद 41 में केवल यह लिखा गया कि राज्य इसकी आर्थिक क्षमतायों और और विकास की सीमायों के भीतर शिक्षा के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए प्रभावशाली प्रावधान करेगा । क्योंकि संसाधन पर्याप्त न होने के कारण सरकार अकेली यह काम नहीं कर सकती थी इसलिए सरकार ने प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा दिया और उन्हें फलने-फूलने का अवसर दिया । सरकार ने प्राइवेट स्कूलों को आर्थिक मदद भी प्रदान की। शुरू में ये स्कूल गैर लाभकारी संगठनों के रूप में कार्य करते रहे और फलते-फूलते रहे । सरकार के भरसक प्रयास के बावजूद भी सरकारी स्कूल लोगों के आकर्षण का केंद्र नहीं बन पाए और अभिभावकों में अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने का रुझान बना रहा और इस बात का लाभ उठा करके बहुत से लोगों ने इसे लाभ का धंधा समझते हुए व्यापार की दृष्टि से स्कूल स्थापित करने शुरू कर दिए और धीरे-धीरे इसका कानूनी प्रावधान भी करवा लिया ।
भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1992 में मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य नामक मामले में यह निर्णय दिया कि शिक्षा प्राप्त करना देश के प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है । इस मामले में प्राइवेट शिक्षण संस्थानों द्वारा कैपिटेशन फीस लेने पर रोक लगाई गई थी ।
हरियाणा में प्राइवेट स्कूलों पर नियंत्रण के लिए हरियाणा स्कूल एजुकेशन एक्ट 1995 और हरियाणा स्कूल एजुकेशन रूल्ज 2003 लागू किये गए हैं । हरियाणा स्कूल एजुकेशन रूल्स के नियम 3 के अनुसार कोई भी व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह, फर्म, सोसाइटी, ट्रस्ट और कंपनी प्रदेश में प्राइवेट स्कूल स्थापित कर सकती है । धर्मार्थ समिति या ट्रस्ट द्वारा स्थापित किए गए स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का खर्च सरकारी स्कूलों से तो अधिक है परन्तु किसी व्यक्ति विशेष, व्यक्तियों के समूह, फर्म या कंपनी द्वारा स्थापित किए गए स्कूलों से कम है क्योंकि इनका स्कूल स्थापित करने का उद्देश्यसमाज सेवा होता है जबकि किसी व्यक्ति विशेष, व्यक्तियों के समूह, फर्म या कंपनी द्वारा स्कूल स्थापित करने का उद्देश्य लाभ कमाना होता है ।
यदि प्राइवेट स्कूलों के नाम पर चल रहे व्यापार को रोक कर इन्हें हर वर्ग के अधिकतर अभिभावकों की पहुँच में लाना है तो हरियाणा स्कूल एजुकेशन एक्ट 1995 और हरियाणा स्कूल एजुकेशन रुल्ज 2003 में संशोधन करना होगा । हरियाणा स्कूल एजुकेशन रूल्स के नियम 10 के अनुसार कोई भी मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूल अपने विद्यार्थियों को किसी भी प्रकाशक की पाठ्य-पुस्तकें लगा सकता है, शर्त बस केवल इतनी है कि वे पाठ्य-पुस्तकें निदेशक या संबंधित शिक्षा बोर्ड द्वारा निर्धारित सिलेबस को कवर करती हों ।उल्लेखनीय है कि प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं के लिए सिलेबस का निर्धारण निदेशक शिक्षा विभाग करता है जबकि उच्च और वरिष्ठ माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ाए जाने वाले सिलेबस का निर्धारण संबंधित शिक्षा बोर्ड करता है । यदि सरकार चाहती है कि सभी प्राइवेट स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाई जाएँ तो इस नियम में संशोधन करके यह बात लिखनी होगी ।
हरियाणा स्कूल एजुकेशन रूल्स के नियम 158 के अनुसार सरकार से आर्थिक मदद न लेने वाले प्राइवेट स्कूल अपनी मर्जी के अनुसार अपनी फीस निर्धारित कर सकते हैं । उन्हें बस इतना भर करना होता है कि प्रतिवर्ष नया सत्र आरंभ होने से पहले नए सत्र में ली जाने वाली फीस की सूचना फॉर्म नंबर 6 में भरकर स्कूल शिक्षा विभाग को देनी होती है । नियमानुसार विभाग उसमें कोई काट-छांट नहीं कर सकता ।यदि सरकार वास्तव में चाहती है कि प्राइवेट स्कूलों की फीस ज्यादातर अभिभावकों की पहुंच में हो तो इस नियम में संशोधन करके प्राइवेट स्कूल फीस अप्रूवल कमेटियों के गठन का प्रावधान करना होगा और यह प्रावधान भी करना होगा कि प्रत्येक प्राइवेट स्कूल प्रतिवर्ष नए सत्र में ली जाने वाली फीस से संबंधित विस्तृत विवरण फीस अप्रूवल कमेटी को प्रस्तुत करेगा और फीस अप्रूवल कमेटी पूरी छानबीन के बाद उसे उसी रूप में या संशोधित करके अप्रूव करेगी और उसी के अनुसार प्राइवेट स्कूल फीस ले सकेगा । फिलहाल नियमों में मण्डल स्तर पर मंडलायुक्त की अध्यक्षता में जिन फी एंड फंड्स रेगुलेटरी कमेटियों के गठन का प्रावधान है वे सिर्फ किसी प्राइवेट स्कूल द्वारा कैपिटेशन फीस लेने और शिक्षा सत्र के दौरान स्कूल द्वारा शिक्षा सत्र के आरम्भ में घोषित की गई फीस से अधिक फीस वसूलने के विरुद्ध शिकायत सुन सकती हैं ।
वर्ष 2018 से प्रदेश सरकार ने सरकारी सहायता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों को सरकारी अनुदान देना बंद करके उन्हें पूरी तरह से स्व वितपोषित बना दिया है जिस कारण सभी प्राइवेट स्कूल महंगे हो गए हैं ।
लेखक : रघुभूषण लाल गुप्ता
लेखक परिचय लेखक रघुभूषण लाल गुप्ता एक शिक्षाविद् है। लगभग चार दशक तक हरियाणा प्रदेश के सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में अध्यापक, मुख्याध्यापक व प्रिंसिपल के पदों पर कार्यरत रहा है । महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक से प्रथम श्रेणी में एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की हुई है । यह लेख अनुभव और अध्ययन के आधार पर लिखा गया है ।
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