पति की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए रखा करवा चौथ का व्रत
विधि विधान के साथ पूजा करते करवा चौथ व्रत की कथा को सुना और सुनाया गया
सभी विवाहित महिलाओं ने अपने से उम्र में बड़ी महिलाओं का लिया आशीर्वाद
भारतीय सनातन संस्कृति में प्रत्येक त्योहार और पर्व में समाहित है सामाजिक संदेश
फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम / पटौदी । भारतीय सनातन संस्कृति में सभी त्योहार और पर्व के पीछे कोई ना कोई सामाजिक और पारिवारिक संदेश की कहानी के साथ इसका महत्व भी समाहित है। वर्ष भर में विभिन्न त्योहार ऐसे आते हैं जो केवल और केवल महिलाओं पर ही आधारित या केंद्रित रहते हैं । भारतीय सनातन संस्कृति में वेद पुराण, धर्म ग्रंथो इत्यादि में भी भारतीय नारी की दृढ़ इच्छा शक्ति, आत्मबल, सतीत्व का तथ्यआत्मक उल्लेख मिलता है । सभी त्योहार कोई ना कोई सकारात्मक संदेश ही देते आ रहे हैं।
इसी कड़ी में करवा चौथ का व्रत भी हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सुहागिन महिलाओं के द्वारा रखा जाता है। संडे को करवाचौथ पर सुहागिन महिलाओं के द्वारा अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखते हुए और विधि-विधान के साथ पूजा करके अपने विवाहित जीवन की खुशहाली के लिए प्रार्थना की गई। इस प्रकार की मान्यता भी चली आ रही है कि करवाचौथ का व्रत, कथा के बिना पढ़े अथवा इसको सुने पूजा अधूरी मानी जाती है। शहर से लेकर देहात तक करवा चौथ पर्व को लेकर महिला वर्ग में सबसे अधिक उत्साह और उमंग दिखाई दिया । बाजारों में एक अलग ही प्रकार की चहल पहल सुबह से शाम तक बनी रही । महिलाएं अपनी अपनी पसंद और समर्थ के मुताबिक गहने भी खरीद से हुई देखी गई। इसके अलावा और भी सुहाग की निशानी अथवा वैवाहिक जीवन की निशानियां महिला वर्ग के द्वारा खरीदने को प्राथमिकता प्रदान की गई । सबसे अधिक विभिन्न प्रकार की संदेश देने वाली तथा आकर्षक मेहंदी अपने अपने हाथों में रचाई गई और त्योहार के मौके पर पहने जाने वाले पारंपरिक पीलिया ओढ़नी इत्यादि के साथ संपूर्ण श्रृंगार किया गया।
सुहागिन महिलाओं ने विभिन्न स्थानों पर समूह में बैठकर पूजा की सामग्री के साथ करवा चौथ की व्रत की कथा को भी सुना । करवा चौथ की व्रत सुनने के लिए परिवार, मोहल्ले की बुजुर्ग अथवा उम्र में बड़ी महिलाओं को भी प्राथमिकता प्रदान की गई । करवा चौथ की कथा को सुनते हुए बताया गया कि किस प्रकार से अपने सुहाग की रक्षा की गई अथवा उसके प्राण बचाए गए। अनादि काल से इसी परंपरा के मुताबिक महिला वर्ग के द्वारा करवा चौथ का पर्व मनाते हुए इस दिन पति की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए व्रत रखने का सिलसिला चला आ रहा है । सुहागिन महिलाएं दिन ढलने पर चांद निकलने के बाद ही चांद और पति के दर्शन कर चांद को अर्घ अर्पित कर इसके बाद ही अपना व्रत खोलती है। बदलते समय और आधुनिकता के दौर में अब यह करवा चौथ व्रत का पर्व भी सामूहिक रूप से किसी बड़े उत्सव के रूप में भी मनाया जाने लगा है । वहीं समाज परिवार के सदस्य पत्नी अथवा अर्धांगिनी को महंगे से महंगा उपहार देने में भी पीछे नहीं रहते हैं । लेकिन इस पर्व के पीछे सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि पत्नी अपने पति की दीर्घायु और उसके मंगल कामना के लिए ही उपवास रखती है।
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