सिंदूर कोई झंडा नहीं, जिसे कि किसी के हाथ में जबरन थमाया जाए- पर्ल चौधरी
सिंदूर-मंगलसूत्र का विवाहिता के जीवन में सर्वोच्च स्थान और महत्व
संस्कृति का विकृतिकरण और पीड़ित परिवारों की पीड़ा पर सियासी नाटक
सिंदूर कोई किसी प्रचार का पर्चा नहीं, जिसे घर-घर बाँट प्रचार किया जाए
क्या मनचले राजनीति की आड़ में सिंदूर भेज महिला अपमान नहीं करेंगे
अटल हिन्द ब्यूरो /फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । 26 निर्दोष नागरिकों की पहलगाम में आतंकियों द्वारा बर्बर हत्या ने पूरा देश को शोक और आक्रोश में डूबा दिया। तब भी भाजपा ने एक बार फिर अपनी असंवेदनशीलता और स्त्री विरोधी मानसिकता का प्रदर्शन किया। अब “घर-घर सिंदूर” नाम से जो तथाकथित राष्ट्रभक्ति अभियान शुरू किया जा रहा है। वह दरअसल नारी गरिमा का अपमान, संस्कृति का विकृतिकरण और पीड़ित परिवारों की पीड़ा पर सियासी नाटक है। क्या भाजपा यह बताना चाहती है कि अब देश में कोई भी पुरुष, किसी भी स्त्री को “राष्ट्रभक्ति” के नाम पर सिंदूर भेज सकता है ? भाजपा के द्वारा सिंदूर घर-घर पहुंचने की तेजी से आ रही खबरों और प्रस्तावित योजना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यह बात सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री श्रीमती पर्ल चौधरी ने कही ।
सिंदूर सनातन संस्कृति में एक पवित्र प्रतीक है — यह नारी की स्वेच्छा से अपनाई गई उस मर्यादा का चिह्न है, जो पति-पत्नी के शुभ संबंधों पर आधारित होती है। सिंदूर कोई झंडा नहीं, जिसे किसी के हाथ में जबरन थमाया जाए। सिंदूर कोई किसी प्रचार का पर्चा नहीं, जिसे घर-घर बाँटकर प्रचार किया जाए। सिंदूर और मंगलसूत्र विवाहिता के जीवन में सर्वोच्च स्थान रखता है । इतिहास इस बात का गवाह है कि सिंदूर अथवा सुहाग और मंगलसूत्र के लिए स्त्रियां तो यमराज से भी दो-दो हाथ करने में पीछे नहीं रही है। यह तो बिलकुल भी नहीं कि कोई मनचला लड़का या अराजक मानसिकता वाला व्यक्ति, राष्ट्रभक्ति की आड़ में किसी महिला को सिंदूर भेजकर उसके सम्मान के साथ खिलवाड़ करे।
किस अधिकार के साथ सिंदूर सौंपा जाएगा
उन्होंने भाजपा और भाजपा सरकार से सवाल किया
क्या स्त्रियाँ अब पुरुषों से पूछेंगी ? “आप मुझे सिंदूर क्यों भेज रहे हैं ? क्या आप मेरे पति हैं ? या आप कि नैतिक , सामाजिक और कानूनी अधिकार के साथ सिंदूर मुझे देना चाहते हैं ?” अनगिनत घर ऐसे हैं जहां घर का पुरुष देश की सीमा और राष्ट्रीय सुरक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे चुके। अनेक घर ऐसे हैं जहां पर वीरांगनाएं अपने शहीद पति की यादों के साथ बच्चों को देशभक्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रेरित करते हुए तैयार कर रही है । अनेक बुजुर्ग माता-पिता ऐसे भी हैं जो शहादत को प्राप्त कर चुके अपने बच्चों, के बच्चों को फिर से सीमा पर भेजने के लिए संकल्प किए हुए हैं। क्या ऐसे घरों में सिंदूर ले जाने वालों के हाथ और पांव नहीं कापेंगे ? क्या वह मानसिक रूप से पूरी तरह इस कार्य के लिए तैयार होंगे ? सबसे बड़ा सवाल सिंदूर को ले जाने वाले लोगों के घरों में ही क्या शहीदों की वीरांगनाएं नहीं होगी ? जब उनके घर में कोई सिंदूर लेकर पहुंचेगी ऐसे परिवार की महिलाएं क्या उसे सहर्ष स्वीकारेंगी यह स्वीकार करवाया जाएगा ?
कार्यक्रम सांस्कृतिक क्रूरता और राजनीतिक बर्बरता
कांग्रेस नेत्री श्रीमती चौधरी ने कहा और सामाजिक तथा नैतिक रूप से सवाल भी भाजपा से किये । यह कार्यक्रम दरअसल महिलाओं को निशाना बनाने का संघटित सामाजिक औजार बन सकता है। जो महिला की मांग में सिंदूर नहीं हो अथवा नहीं लगे लगाए, वह “राष्ट्रविरोधी” ? जो विधवा है, या जिसने सिंदूर छोड़ दिया, क्या वह अपवित्र मानी जाएगी ?
क्या किसी किशोरी, युवती या पत्रकार को भेजा गया सिंदूर अब एक राजनीतिक धमकी का संकेत बनेगा ? ये सारे सवाल भाजपा के इस कार्यक्रम की सांस्कृतिक क्रूरता और राजनीतिक बर्बरता को उजागर करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट श्रीमती पार्लर चौधरी ने सवाल किया कि प्रधानमंत्री , ये बताइए- आप कहते हैं आपके नसों में खून नहीं, गर्म सिंदूर बहता है ।
तो क्या उस गर्म सिंदूर ने हिमाशी नरवाल के पति की जान बचाई ? क्या वह गर्म सिंदूर उन 26 और मृतकों को आतंकियों से बचा सका ? आपका सिंदूर सिर्फ भाषणों में गरम है — ज़मीन पर वह राख बन चुका है।आपकी ही पार्टी भाजपा के सांसद रामचंद्र जांगड़ा का बयान — नारी विरोध की पराकाष्ठा। जब भाजपा के सांसद यह कहते हैं कि “जिनका सिंदूर उजड़ा, वे वीरांगना थीं ही नहीं”, तो यह बयान न केवल अमानवीय है, बल्कि आतंकवाद से भी अधिक खतरनाक मानसिकता को दर्शाता है। यह कहना कि एक निहत्थी महिला अपने पति को एके-47 से लैस आतंकियों से नहीं बचा पाई, इसलिए वह सम्मान के योग्य नहीं — यह उस स्त्री के घावों पर नमक नहीं, तेज़ाब छिड़कने जैसा है।
श्रीमती पर्ल चौधरी ने काँग्रेस का स्पष्ट पक्ष और मत व्यक्त करते हुए कहा सिंदूर निजी श्रद्धा का विषय है, सत्ता की वस्तु नहीं। हर महिला को यह अधिकार है कि वह कब, क्यों और किसके लिए सिंदूर धारण करे । यह निर्णय और अधिकार विवाहित महिला का है, भाजपा का नहीं। हम इस “घर-घर सिंदूर” अभियान का पूर्ण विरोध करते हैं । यह महिलाओं की स्वतंत्रता, गरिमा और सांस्कृतिक प्रतीकों का सामूहिक राजनीतिक अपमान है।
सिंदूर जबरन देना महिला से दुर्व्यवहार के जैसा
श्रीमती चौधरी ने नाराजगी सहित अपनी मांग इस प्रकार से रखी की -“घर-घर सिंदूर” अभियान को तुरंत वापस लिया जाए। रामचंद्र जांगड़ा को सांसद पद से बर्खास्त किया जाए और पीड़ित परिवारों से माफ़ी मँगवाई जाए। महिलाओं को सिंदूर भेजने या जबरन बाँटने की किसी भी कोशिश को दुर्व्यवहार की श्रेणी में रखा जाए। नारी कोई राजनीतिक बैनर नहीं है , वह समाज की आत्मा है। महिला को अपमानित करना, राष्ट्र की आत्मा को कलंकित करना है। भाजपा को यह समझ लेना चाहिए कि नारी को वोट बैंक नहीं, महिला को पूरा सामाजिक नैतिक और कानूनी सम्मान चाहिए । यह सम्मान भीख में नहीं, संविधान से और संस्कृति की मर्यादा से मिलता है।
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