AtalHind
गुरुग्राम (Gurugram)टॉप न्यूज़हरियाणा

डीएपी खाद के साथ ऐसी बात कहां ? जो जलेबी के साथ होता दिखाई दिया

गोल गोल और सीधी बात
… जलेबी बना दी मुद्दा तो फिर डीएपी खाद पर खामोशी क्यों !
Advertisement
जलेबी फैक्ट्री में बने ना बने डीएपी के लिए तो कारखाने मौजूद
Advertisement
जलेबी की टीआरपी को पहुंचा दिया गया टीआरपी के चरम पर
पूरे प्रदेश में जलेबी से अधिक डीएपी खाद के लिए मची हुई मारामारी
Advertisement
अटल हिन्द ब्यूरो /फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । जलेबी का जलवा, लेकिन दूसरी तरफ खाद के लिए बलवा । यह गोल-गोल लेकिन बिल्कुल सीधी बात है। भाजपा की हैट्रिक सरकार जो कि हरियाणा प्रदेश में बनी है। चुनाव के दौरान जलेबी को तो पॉलिटिकल मुद्दा बना दिया गया। लेकिन डीएपी खाद पर खामोशी की खाद का असर साफ देखा जा सकता है। जलेबी जैसा गोल-गोल मीठा और सीधा सवाल यही है कि जलेबी को तो चुनाव से लेकर और चुनाव के बाद तक मुद्दा बना दिया गया। लेकिन डीएपी खाद को लेकर खामोशी भी एक मुद्दा कही जा सकती है ।
Advertisement
राजनीति का नाम सुनते ही आम शरीफ आदमी अपने को बेबस महसूस करने लग जाता है ये सच है या सिर्फ कहावत ये तो वही जाने को खुद को बेबस महसूस करता है लेकिन हम बात कर रहे है उन राजनीति और कुर्सी के लोभी लालची जो सत्ता में बने रहने के लिए कोई भी समस्या कभी भी पैदा कर देते है।
जी हाँ हरियाणा की आज से पूर्व लगभग 30 साल पुरानी राजनीति और आज की राजनीति में बहुत फर्क है पहले एम्बेसडर कार (Ambassador Car ) जोकि दशकों तक नौकरशाहों और नेताओं की सवारी रही है। यह कार अब भारत की सड़कों पर बहुत कम दिखाई देती है,वही आजकल भारत का एक फ़क़ीर जगुआर लैंड रोवर की हैंड-बिल्ट फुली आर्म्ड रेंज रोवर सेंटिरनल (Hand-built fully armed Range Rover Sentinel). इस मॉडल की कार यूं तो बाजार करीब दो करोड़ रुपये में मिल जाती है। लेकिन करीब 10 करोड़ रुपये बताई जाती है में चलता है यानी बदलाव प्रकृति का नियम है।
लेकिन बदलते हालात में हम यहाँ बात कर रहे है किसानों की फसल में काम आने वाले डीएपी खाद की जो आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व खुला मिला करता था उस समय किसान खेती भी खूब किया करते थे और खाद का उत्पादन भी सही मात्रा के जरूरत के अनुसार हो रहा था लेकिन अब खेत खलिहान कम हो गए ,किसान किसान नहीं रहा ,खाद खाद ना होकर नेताओं का वोट बैंक बन गया होना तो यह चाहिए था की उत्पादन बढ़ाया जाए लेकिन अगर ऐसा कर दिया जाता तो फिर सरकारों और अधिकारीयों की पूछ कौन करता। इसलिए खाद अब खाद नहीं रहा पुलिस पहरे में बिकने वाला ,कई बार तो हमने खाद और किसानों के बीच पुलिस का लाठीचार्ज होते भी देखा है। इसलिए लिए तो सरकार कहा जाता है जो समस्या का हल नहीं बल्कि समस्या बढ़ाती है ताकि उसकी पूछ होती रहे। खैर अब मुद्दे की बात पर आते है हरियाणा से एम्बेसडर कार गई ,बीजेपी आते ही जलेबी की फक्ट्री लग गई लेकिन खाद वितरण पर पुलिसिया पहरा बैठा दिया गया।
Advertisement

 

भाजपा की हैट्रिक वाली तीसरी सरकार बनने के बाद भी नेता जलेबी के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल सके । अपने हाथों से जलेबी बनाई भी और जलेबी को परोस कर खिलाया भी, खाया भी । 2024 के विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया से लेकर सरकार के गठन और इसके बाद के हालात पर ध्यान दिया जाए तो यह बात साफ-साफ महसूस की जा रही है कि हरियाणा प्रदेश में जलेबी की मार्केटिंग या फिर जलेबी की टीआरपी को भी टीआरपी के चरम पर पहुंचा दिया गया। जलेबी किसी फैक्ट्री में बने या ना बने लेकिन डीएपी खाद के लिए तो बड़े-बड़े कारखाने उपलब्ध हैं । बेहद गंभीर और विचारणीय प्रसंग है यदि खाद और बीज की जितनी जलेबी की डिमांड हो और खाद को जलेबी की तरह बनाया जाए ? तो फिर इसका समाधान के लिए घमासान होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
Advertisement
मौजूदा समय में सबसे अधिक जरूरत किसान वर्ग को डीएपी खाद और विशेष रूप से सरसों तथा गेहूं की बिजाई के लिए मनपसंद अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों की  है। इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं की जिस अंदाज में जलेबी को राजनीतिक मुद्दा बनाया गया और जलेबी की मार्केटिंग करते हुए जलेबी के टीआरपी को भी हवा मिल गई। इसके विपरीत डीएपी खाद के लिए पूरे प्रदेश में छोटे-छोटे कस्बा से लेकर ग्रामीण इलाके और शहरी क्षेत्र में जबरदस्त मारामारी मची हुई है ।
जलेबी के लिए कोई दावा नहीं की सूरज निकलने से पहले अंधेरे में ही खरीदारों की लाइन लगती हो ? लेकिन यह गोल-गोल जलेबी के विपरीत सीधा सीधा मामला है , खाद बिक्री केंद्र पर घटते तापमान के बीच सूरज निकलने से पहले लंबी-लंबी लाइन खाद खरीदने वाले किसानों की लगना आरंभ हो जाती है। राजनीतिक मुद्दा बना दी गई जलेबी से भी मीठी सच्चाई यह भी है कि खाद के बिक्री केंद्र पर किसान परिवारों की या फिर ग्रामीण महिलाओं की लाइन भी सूरज निकलने से पहले लगी हुई देखी जा सकती है।
Advertisement
इसी कड़ी में एक और बेहद रोचक पहलू यह है कि जिस जलेबी को राजनीतिक मुद्दा बना कर टीआरपी बढ़ाई गई । उसकी बिक्री और खरीदारी पर कोई लिमिट नहीं है । जितना मर्जी बनाओ और जितना मर्जी खरीदार की इच्छा हो खरीद कर ले जाए।राजनेता या फिर खरीदार जब चाहे जलेबी सेंटर पर पहुंच जाए और जलेबी भी हाथों – हाथ मिल जाए। लेकिन डीएपी खाद के साथ ऐसी बात कहां ? जो जलेबी के साथ होता दिखाई दिया । दूसरी तरफ डीएपी खाद जिसे उपलब्ध करवाना जलेबी को राजनीतिक मुद्दा बनाने वालों की जिम्मेदारी ही कहा जा सकता है । उनके द्वारा डीएपी खाद की बिक्री और इसके खरीदार के लिए कोटा निर्धारित किया गया है ।
Advertisement
एक किसान अथवा एक खरीदार अधिक से अधिक कितने बैग डीएपी खाद के खरीद कर ले जा सकता है । जलेबी और डीएपी खाद इन दोनों में एक और अंतर यह है कि जलेबी ताजा बनाकर ताजा ही बिक्री की जाती है । इसको लंबे समय तक स्टोरेज करना संभव नहीं । दूसरी तरफ डीएपी खाद और बिजाई के लिए फसल का बीज स्टोरेज किया जा सकता है। अब देखना यही है कि जलेबी को राजनीतिक मुद्दा बनाने के बाद डीएपी खाद के लिए मचे हुए बवाल के बीच में डीएपी खाद सहित फसल के लिए  मनपसंद बीज का मामला कितनी जल्दी जलेबी के मुद्दे को मात देने वाला मुद्दा बनाया जा सकेगा।
Advertisement

Related posts

तीन अंतर्राज्यीय शातिर अपराधियों को दबोचा

admin

बीजेपी और पीएम मोदी ने केजरीवाल के “गारंटी” शब्द को चुरा लिया – डॉ. सुशील गुप्ता

editor

GURUGRAM NEWS-बजरंग पूनिया बने पर्ल चौधरी के सारथी

atalhind

Leave a Comment

URL