यह रिश्ता क्या कहलाता है
घर से रवाना हो तो परिवारिक सदस्य रिश्तेदार करता है गर्व, होता है मायूस
घर लौटने पर सभी को होती है अपार खुशी लेकिन खुशी का कोई मोल नहीं
वर्दी में घर से जाए तो गर्व और तिरंगे में लिपट लौटकर आए तो भी गर्व
पुरुष हो या महिला रिश्तो के अलग नाम, लेकिन राष्ट्र सुरक्षा ही काम
फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । झगड़ा, विवाद या फिर युद्ध । जो कुछ भी हो, कहा गया है कि इसका अंतिम और निर्णायक फैसला टेबल पर ही शांति के रूप में होता है । इस शांति से पहले होने वाले नुकसान का किसी भी प्रकार से अनुमान अथवा आकलन किया जाना संभव नहीं है । बदलते समय के साथ विभिन्न सुरक्षा बलों में महिला और पुरुष अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं । सुरक्षा बलों में यदि कहा जाए तो सबसे अधिक जिम्मेदारी सैनिकों पर ही कहना अनुचित नहीं होगा। फिर मामला चाहे किसी दुश्मन देश से युद्ध का हो। देश में ही आंतरिक सुरक्षा का मामला हो । कहीं पर बाढ़ जैसे हालात हो, कहीं पर सूखे जैसे हालात हो, तूफान हो। आगजनी हो या फिर ड्यूटी पर रहते हुए बर्फीली पहाड़ियों या फिर आग उगलता रेगिस्तान ही क्यों ना हो । सबसे पहले सैनिक को ही याद किया जाता है। पुलवामा में आतंकी हमले के बाद पहलगाम के आतंकी नरसंहार और इससे पहले के पाकिस्तान या फिर चीन से हुए युद्ध को देखा जाए तो भारतीय सैन्य बल के जीवट और साहस सेल्यूट बनता ही है।If you leave home in uniform, you feel proud and if you return wrapped in the tricolour, you feel proud too
जिस भी किसी परिवार से कोई पुरुष या महिला थल सेना में वायु सेना में या फिर जल सेना में और इसके अलावा बीएसएफ, सीआरपीएफ या अन्य सुरक्षा बल में कार्यरत है। क्या कभी विचार किया गया है , उस एक महिला या पुरुष का अपने परिवार रिश्ते नातेदारों से जो रिश्ता है, वास्तव में … यह रिश्ता क्या कहलाता है ? इस रिश्ते को कोई शब्द नहीं दिया जा सकता। वास्तव में यह रिश्ता महसूस किया जाता है, और रिश्ता भी ऐसा जो की भूले से भी भूलाया नहीं जा सकता । सबसे अधिक यह रिश्ते संबंधित परिवार के सदस्यों और रिश्ते नातेदारों के यहां यादगार फोटो या फिर चित्र के रूप में अवश्य देखने के लिए मिलते हैं और मिलते ही रहेंगे।
किसी भी परिवार का कोई भी पुरुष या महिला सदस्य जब सुरक्षा बल या फिर सैन्य बल की वर्दी पहना है। तो यह सभी के लिए गर्व और गौरव का मौका होता है । लेकिन जब रिश्ते की बात की जाए तो इन रिश्तों को अलग-अलग परिभाषा देकर एक सामाजिक संरचना की पहचान और कड़ी बनती चली जाती है। थल, वायु या फिर जल सेना में राष्ट्र सेवा का संकल्प लेकर जाने वाला कोई भी युवक अथवा पुरुष सबसे पहले बेटा ही होता है, कहलाता है । लेकिन इससे पहले वह किसी न किसी का दोस्त भी अवश्य होता है। इस रिश्ते की कड़ी में यही पुरुष सैनिक भाई, पति, पिता, चाचा, ताऊ, मामा, फूफा, जीजा, देवर, जेठ, दादा और नाना जैसे रिश्तो के रूप में भी अपनी पहचान बनाए रखना है। इतने लंबे रिश्तो की पहचान में उम्र का भी अपना ही एक अलग महत्व छिपा हुआ है । इसी प्रकार से यदि कोई युवती या फिर महिला थल, वायु और जल सेना या फिर किसी अन्य सुरक्षा बल में सेवा के लिए समर्पित है । तो उसके रिश्ते भी इसी प्रकार से बेटी के रूप में सबसे पहले पहचान बनाते हैं । इससे पहले वह भी निश्चित रूप से किसी न किसी की सहेली अवश्य ही बनी होगी । इस रिश्ते की कड़ी में आगे बढ़ते हुए युवती या महिला की पहचान बहन, पत्नी, मां, चाची, भाभी, ननद, ताई, मामी, बुआ, जेठानी, देवरानी, दादी, नानी के रूप में भी होती है । देखा जाए तो पुरुष अथवा महिला अकेले होकर कितने रिश्तो की पहचान और कड़ी अपने साथ जोड़े हुए हैं।
मौजूदा समय में थल वायु और जल सेना के अलावा विभिन्न सुरक्षा बलों में अनेक ऐसे महिला और पुरुष अपनी सेवाएं राष्ट्र को समर्पित किए हुए हैं , जो की जीवनसाथी है । सीधे और सरल शब्दों में पति-पत्नी है । यह बात अलग है कि यह जांबाज दंपति कहीं ना कहीं अलग-अलग सैन्य बल में या फिर एक साथ भी सैन्य बल में कार्यरत है। इनका अपने घर परिवार बच्चों और रिश्ते नातेदारों से दूर रहते हुए केवल और केवल एक ही लक्ष्य और एक ही सपना, देश की सीमा की सुरक्षा करना। इस सुरक्षा सीमा के अंदर या फिर वहां से बहुत दूर रह रहे अपने-अपने परिजनों और रिश्ते नातेदारों को भी अपनी जान पर खेल कर सुरक्षा उपलब्ध करवाना । यह भी इसी रिश्ते की एक बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी वाली और संवेदनशील कड़ी में शामिल है।
वर्दी धारी कोई भी सैनिक महिला हो या पुरुष जब वह घर से विदा होता है तो परिवार सहित सभी रिश्ते नातेदारों के मन में निश्चित रूप से चल रहे द्वंद्व को सैनिक परिवार का ही कोई सदस्य महसूस कर सकता है । जाने वाला यही वादा करता है कि वह निश्चित रूप से लौट कर आएगा और लौट के लिए भी कोई ना कोई विशेष अवसर त्यौहार का समय भी निश्चित सभी की सहमति से अक्सर किया जाता है। मौजूदा समय में पाकिस्तान और भारत के बीच जिस प्रकार का तनाव महसूस किया जा सकता है। ऐसे में यही वर्दी धारी जांबाज महिला हो या फिर पुरुष। देश की सीमा के साथ-साथ प्रत्येक भारतीय की भी सुरक्षा के लिए अपने-अपने सीने को ढाल बनाए हुए हैं । युद्ध जैसे हालात हो या फिर दुर्गम सीमांत क्षेत्र। वहां पर मौजूद वर्दी धारी का जब परिवार में फोन आता है, तो लगता है जैसे वह परिवार के बीच में ही मौजूद है । जाने वाला लौट कर आने का वादा करता है और यह वादा अवश्य पूरा भी होता है। लेकिन किस रूप में और कब लौट कर आए ? यह भविष्य के गर्भ में ही रहता है । जब कभी कोई भी महिला हो या पुरुष सैनिक अथवा सुरक्षा बल का जांबाज तिरंगे में लिपटकर लौटता है , तो सर्वोच्च बलिदान कहलाता है । इस बलिदान के लिए परिजनों को जहां गर्व होता है , लेकिन इस गर्व के पीछे जो गम छिपा होता है । उसको भी वही महसूस कर सकता है, जिसका जिस प्रकार से रिश्ता बना हुआ हो। और इन्हीं रिश्तो को सिलसिलेवार बताया भी गया । अंत में फिर यही कहा जाएगा या सवाल रहेगा … यह रिश्ता क्या कहलाता है ?
Add A Comment