AtalHind
अंतराष्ट्रीय

गंगा का पानी सिर के ऊपर से निकलने लगा तब शुरू हुआ ‘ऑपरेशन गंगा’: यशवंत सिन्हा

गंगा का पानी सिर के ऊपर से निकलने लगा तब शुरू हुआ ‘ऑपरेशन गंगा’: यशवंत सिन्हा


नई दिल्ली: यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पूरी दुनिया वहां तबाही का मंजर देख रही है और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आक्रामक रवैये को देखकर हर कोई इस बात को लेकर आशंकित है कि कहीं यह विश्वयुद्ध का स्वरूप न ले ले.

रूस का सबसे घनिष्ठ मित्र देश होने के नाते दुनिया की नजर भारत की भूमिका पर भी टिकी है. इस मुद्दे पर पूर्व विदेश मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के नेता यशवंत सिन्हा से समाचार एजेंसी भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब:

Advertisement

यूक्रेन पर रूसी सैन्य कार्रवाई जारी है. दुनिया आशंकित है कि कहीं यह तीसरे विश्वयुद्ध का स्वरूप न ले ले. आपकी प्रतिक्रिया?
सबकी चिंता यही है कि कहीं यह विश्वयुद्ध में तब्दील न हो जाए और विश्वयुद्ध होने का मतलब है परमाणु युद्ध. यह होता है तो और कितने लोग मारे जाएंगे, उसकी कोई गिनती नहीं होगी. इसलिए, पश्चिमी देश खासकर जिनका प्रभाव यूरोप में है, वे नहीं चाहते हैं कि संघर्ष इतना बढ़ जाए कि उनकी सेना को इसमें भाग लेना पड़े.

नाटो ने एक सही रास्ता पकड़ा है. वह संघर्ष नहीं बढ़ाना चाहता. लेकिन इसका दूसरा पक्ष भी है. वह यह कि एक बहुत ही शक्तिशाली देश और उसकी सेना ने एक छोटे से देश पर आक्रमण कर दिया है तथा उसकी स्वतंत्रता को चुनौती दे रहा है. यह सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विपरीत है.

ऐसे में अगर ज्यादा शक्तिशाली देश, कम शक्तिशाली देश को झुका दे और अपनी बात मानने के लिए मजबूर कर दे तो फिर यह जंगलराज हो जाएगा. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जो भी एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनी है, वह समाप्त हो जाएगी.
इस युद्ध के लिए आप किसे दोषी मानते हैं?

Advertisement

हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि पश्चिमी देशों की तरफ से भी बहुत उकसाया गया (यूक्रेन को). रूस को घेरकर रखने की उसकी (पश्चिमी देशों) जो मंशा है, वह यूक्रेन को नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) में शामिल कर रूस को घेरने की तैयारी कर रहे थे.

यूक्रेन में बहुत बड़े-बड़े परमाणु संयंत्र हैं और इसका यूक्रेन के साथ-साथ रूस के लिए भी काफी महत्व है. इसी सबसे चिंतित होकर रूस ने आक्रमण कर दिया.

‘Operation Ganga’ started when Ganga water started coming out from above head: Yashwant Sinha

Advertisement

मेरा यह कहना है रूस की चिंता सही थी, लेकिन उसका तरीका गलत है. उनको (रूस) कोशिश करनी चाहिए थी कि बातचीत से रास्ता निकले. बातचीत से रास्ता निकालने में अगर दूसरे देशों की मदद उन्हें चाहिए थी तो वह भी लेनी चाहिए थी.

जैसे अभी फ्रांस के राष्ट्रपति कोशिश कर रहे हैं. रूस, भारत की सेवाओं का इस्तेमाल भी कर सकता था. वह भारत से हस्तक्षेप करने को कह सकता था. वह भारत को कह सकता था कि वह इस दिशा में कोशिश करे ताकि रूस की सुरक्षा पर खतरा न हो.

भारत के अब तक के रुख का आप कैसे आकलन करेंगे?

Advertisement

रूस से हमारी बहुत पुरानी दोस्ती है. वह हर मौके पर भारत के काम आया है. वह हमारा बहुत ही बहुमूल्य दोस्त है, इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन बहुत नजदीकी दोस्त भी अगर गलती करता है तो दोस्त के नाते हमारा हक बनता है कि हम उसको कहें कि भाई यह गलती मत करो.

अभी तक ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया है कि भारत सरकार ने ऐसा कुछ किया है. संघर्ष शुरू होने के तुरंत बाद हमारे विदेश मंत्री को वहां जाना चाहिए था और कोशिश करनी चाहिए थी कि समस्या का हल वार्ता से निकले. लेकिन ऐसी कोई पहल भारत की ओर से नहीं हुई.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य मंचों पर भारत मतदान से दूर रहा है. इससे ऐसा लगता है कि जैसे गलत काम में हम रूस का साथ दे रहे हैं. इस स्थिति से बचा जा सकता था.

Advertisement

यूक्रेन में फंसे छात्रों को वापस लाने के लिए ‘ऑपरेशन गंगा’ चलाया जा रहा है. बावजूद इसके अभी भी यूक्रेन में सैकड़ों की तादाद में छात्र फंसे हुए हैं और विभिन्न सोशल मीडिया माध्यमों से मदद की गुहार लगा रहे हैं.
भारत सरकार को और हम सब लोगों को पता था कि भारी संख्या में हमारे छात्र वहां पढ़ने जाते हैं. खासकर मेडिकल की पढ़ाई के लिए. दूसरी बात यह है कि भारत सरकार के पास सूचना होगी कि रूस आक्रमण करने वाला है और हमारे विद्यार्थी अगर समय रहते नहीं निकले तो वहां फंस जाएंगे. इसलिए समय रहते उनको निकाल लेना चाहिए था.

उन्हें निकलने के लिए बाध्य करना करना चाहिए था न कि उन्हें उनके विवेक पर छोड़ना चाहिए था. इसके बावजूद कोई नहीं निकलता वहां से, तब हम कह सकते थे कि उसकी गलती है. इस पूरी प्रक्रिया में गंगा का पानी जब सिर के ऊपर से निकलने लगा तब सरकार का ‘ऑपरेशन गंगा’ शुरू हुआ.
रूस और अमेरिका के संदर्भ में भारत की विदेश नीति की आप कैसे समीक्षा करेंगे तथा चीन से मिल रही चुनौती के मद्देनजर इसकी दिशा क्या होनी चाहिए?

नई विश्व व्यवस्था अगर बनती है तो उसमें भारत बहुत कमजोर स्थिति में हो जाता है, क्योंकि अगर इसी तरह ज्यादा शक्तिशाली देश, दूसरे देश के ऊपर आक्रमण करें तो कल चीन को भी यह मौका मिलेगा कि वह ताइवान के ऊपर हमला करे या हमारे यहां लद्दाख और अरुणाचल में.

Advertisement

अरुणाचल खास तौर पर. क्योंकि चीन दावा करता रहा है कि अरुणाचल उसका है. तो कल वह अगर बलपूर्वक अरुणाचल को हथियाने के लिए अपनी सेना भेजे तो फिर क्या होगा?

दूसरी बात यह है कि जिस तरह दुनिया यूक्रेन के मामले में तटस्थ रह गई, उसी प्रकार वह भारत और चीन के मामले में भी रह जाएगी. नई विश्व व्यवस्था बनती है तो उसमें सब देश खुद की चिंता करने के लिए छोड़ दिए जाएंगे. भारत को चीन को लेकर जरूर चिंता करनी चाहिए और पूरे इंतजाम करने चाहिए. हमें गफलत में नहीं रहना चाहिए.

Advertisement
Advertisement

Related posts

मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाली निगरानी तकनीकों पर लगाम लगाएं सरकारें: मानवाधिकार प्रमुख

admin

इजराइल में सत्ता परिवर्तन के बाद भी भारत से संबंध मजबूत बने रहेंगे

admin

भगवा धारियों की नफरती धर्म संसद से भारत की विदेशों में घटी साख

admin

Leave a Comment

URL