ये सरकार के मुँह पर तमाचा है –
कथित हिन्दू ये हमारा कुंभ है तुम्हारा क्या काम है बनाम मुस्लिम
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—राजकुमार अग्रवाल /अटल हिन्द –
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में साम्प्रदियकता दंगों को बढ़ावा देने और भारत की जनता के सामने 2014 के बाद सबसे ज्यादा झूठ बोलने और झूठे आंकड़े पेश करने वाली (कथित हिन्दू सरकार ) बीजेपी सरकार और भारत में बीजेपी सत्तारूढ़ प्रदेशों के कथित हिंदू ठेकेदारों की सभी सोच और कार्यशैली समझ से परे है। , तभी तो उन्होंने महाकुंभ को सांप्रदायिक विभाजन की बुनियाद पर खड़ा करने की कोशिश की है. उनकी इस कोशिश में बाबाओं और शंकराचार्यों का सहयोग भी मिला है. उत्तर पीठ (ज्योतिष) के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने मेला शुरू होने से पहले बयान दिया कि ‘मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का शरीफ में हिंदुओं को 40 किमी पहले ही रोक देते हैं. क्यों रोकते हैं, वो इसलिए न कि हमारा मुसलमानों का तीर्थ है तुम्हारा क्या काम है. तो ठीक है हम भी यही कह रहे हैं कि ये हमारा कुंभ है(this is our Kumbh) तुम्हारा क्या काम है. ग़लत क्या है.’उन्होंने आगे कहा था कि मुसलमान ‘धर्म को भ्रष्ट करना चाहते हैं. हमको अपवित्र बनाना चाहते हैं, इसलिए ‘इनको पास मत आने दो.’
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कहते हैं कि जब कोई गंगा स्नान करके घर आता है तो उसके पैरों में लगकर गंगा की माटी भी चली आती है, उन लोगों के लिए जो गंगा तक नहीं जा पाए. जब महाकुंभ में भगदड़ की रात तमाम श्रद्धालु मेला क्षेत्र से निकलकर शहर में फंस गए तो मौलानाओं ने मस्जिदों के दरवाज़े उनके लिए खोल दिए, और इस तरह जिन मुसलमानों को कुंभ में हिस्सा लेने से रोका गया, कुंभ ख़ुद ही उनके घरों, उनकी मस्ज़िदों में चला आया.
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स्वतंत्र पत्रकार सुशील मानव की रिपोर्ट के अनुसार शहर के मुमताज़ महल इलाके के रहने वाले मुज़फ़्फ़र बाग़ी साहेब बताते हैं, ‘पुलिस वालों ने बैरिकेडिंग लगाकर हमारी गलियों को पैक कर दिया था. हमें बाहर निकलने नहीं दे रहे थे. यहां वहां पुलिस बैठी हुई थी. लेकिन 29 जनवरी को जब माहौल खराब हुआ और तो सारे पुलिस वाले भाग गए. लोगों ने बैरिकेडिंग तोड़ दिया. और हमने अपने घरों के दरवाज़े खोलकर उनका एहतेराम किया.’
मुज़फ़्फ़र बाग़ी साहेब आगे बताते हैं, ’29 जनवरी की रात बहुत मजबूर और लाचार लोग इतना थक गए थे कि पैर पकड़कर बैठ जा रहे थे. जो जनाना थी वो और भी तकलीफों से गुज़र रही थी. हमने अपने घरों के दरवाजे खोल दिए. स्त्रियां बच्चे आदमी सब अंदर आये. उन्होंने हमें इतनी दुआएं दी. उन लोगों की नज़र में उस वक़्त कोई हिंदू-मुस्लिम नहीं था. हमने उनको अपने कंबल, चादर, बिछाने दिए. खाने-पीने ठहरने का इंतजाम किया. मंसूर पार्क, जामा मस्जिद, कचहरी बाजार,रोशन बाग़, वसीउल्लाह साहेब की मस्जिद में गलियों में जितने घर थे सबने दरवाजे खोल दिए.’
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इलाहाबाद का जो रोशन बाग इलाका, सीएए-एनारसी के खिलाफ संघर्ष के गवाह बन चुका था, वह उस रात गंगा-जमुनी तहज़ीब को सींचने के लिए रोशन हुआ. इलाहाबाद की बड़ी मस्जिद वसीउल्लाह मस्जिद के इमाम साहेब की अगुवाई में महाकुंभ के श्रद्धालुओं को रोशन बाग पार्क में पानी और खाने का इंतज़ाम किया गया.
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स्थानीय निवासी मोहम्मद तासू उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने 29 और 30 जनवरी की रात शहर के चौक इलाके में यादगारे हुसैनी इंटर कॉलेज में 4-5 हजार श्रद्धालुओं को इंतज़ाम के लिए किया. तासू बताते हैं कि 31 तारीख को भी हज़ार के क़रीब श्रद्धालु लोग स्कूल में आकर रुके.
गौहर आज़मी यादगारे हुसैनी इंटर कॉलेज के प्रबंधक हैं. गौहर बताते हैं, ’30 जनवरी की रात भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु आए स्कूल में. उनके रहने के लिए पूरा कॉलेज खुलवा दिया है. चाय-बिस्कुट, खाना-बिछौना सब इंतजाम किया है. केवल हम ही ने नहीं बहुत से स्थानीय लोगों ने पूरे इलाहाबाद में ग्रामीण इलाकों में भी सड़क किनारे सबके खाने,पानी ठहरने का इंतजाम किया.’
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ऐसे एक अन्य शख्स हैं, मोहम्मद अनस, जो इलाहाबाद के मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स अनवर मार्केट के मालिक हैं. उस रात अनस ने पूरा अनवर मार्केट खुलवा दिया. गद्दा-रजाई, चाय-नाश्ता खाना, गरम पानी का इंतज़ाम किया. फेसबुक के जरिये भी खबर फैला दी.
वे कहते हैं, ‘महाकुंभ में तमाम बाबाओं ने बयान दिया कि यहां मुसलमानों की दुकानें नहीं लगेंगी और इसका व्यापक असर हुआ. 99 फीसदी मुसलमानों ने वहां दुकानें नहीं लगाईं, केवल डर के मारे.’
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उनका कहना है कि मुसलमानों के खिलाफ़ इस प्रोपेगैंडा के बावजूद समूचे समुदाय ने पीड़ित लोगों की मदद की और उस वक्त किसी ने भी नहीं पूछा कि हम मुसलमान के हाथ का खाना और पानी क्यों लें. ‘ये सरकार के मुँह पर तमाचा है.(This is a slap on the face of the government)
यादगारे हुसैनी ,मजीदिया इस्लामिया, वसीउल्लाह मस्जिद के इमाम ने लंगर चला दिए. नूरुल्लाह रोड के मुस्लिम युवक जगह जगह चाय बिस्किट का फ्री स्टॉल लगा दिए. ईसाई समाज ने नाजरेथ हॉस्पिटल के सामने खाने आराम करने की व्यवस्था कर दी. फादर विपिन डिसूजा की अगुवाई में श्रद्धालुओं के लिए विशाल भंडारा लगाया गया. म्योराबाद चर्च कंपाउंड के पास चार्ली प्रकाश एडवोकेट ने लंगर लगा दिया. हाई कोर्ट के अधिवक्ता वर्चस्व वाजपेई माकू और इलाहाबाद इंटर कॉलेज के प्रबंधक राजेश अग्रवाल सारी व्यवस्था के साथ एक पैर पर खड़े रहे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कमल कृष्ण राय कहते हैं, ‘यही हैं इलाहाबाद के मायने. जब जरूरत पड़ती है. जब मुश्किल वक़्त आता है, मुसीबत की घड़ी होती है, तो फिर न हिंदू न मुसलमान. फिर इलाहाबादियत और इंसानियत का परचम लहराता है.’
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====साम्प्रदायिक हिंसा की शुरुआत=====
भारत की आज़ादी के पहले डेढ़ दशक में सांप्रदायिक शांति का दौर था. लेकिन 1961 के जबलपुर दंगों से शुरू होकर, भारत लगातार सांप्रदायिक हिंसा से दहलता रहा है. और हिंसा की हर घटना सुरक्षा की तलाश में मुसलमानों को घेटो में जाने के लिए बाध्य करती है, जिससे उनका जनसांख्यिकीय अलगाव और बढ़ जाता है.अहमदाबाद में 1969, 1985 और 2002 सहित कई बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए हैं. ख़ासकर 1985 से, और 2002 में और भी बड़े पैमाने पर, जुहापुरा (जिसे अक्सर अपमानजनक रूप से ‘मिनी-पाकिस्तान’ कहा जाता है) अपने हिंदू पड़ोसियों के साथ मिश्रित कॉलोनियों में रहने से डरने वाले मुसलमान नागरिकों की भीड़ का गंतव्य बन गया.विडंबना यह है कि कई राज्यों में मुसलमानों को अलग-थलग करने के लिए क़ानून का इस्तेमाल किया जा रहा है. 1991 में, गुजरात विधानसभा ने अशांत क्षेत्र अधिनियम, 1991 पारित किया. यह राज्य सरकार को दंगा-ग्रस्त शहरी क्षेत्रों को ‘अशांत‘ घोषित करने का अधिकार देता है.
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—प्रयागराज में अमीरों का कुंभ–
यह कुंभ जैसा नहीं लगता. इतनी खुली और खाली सड़कें. अमीर और गरीब के बीच की खाई धर्म में भी आ गई है-साभार कृष्ण मुरारी
–प्रयागराज में गरीबों का कुंभ—
महाकुंभ में भगदड़ की रात तमाम श्रद्धालु मेला क्षेत्र में जिन्हे बचाने वाला कोई नहीं था। कथित हिन्दू और मेले में ना आने वालों को देश द्रोही तक कहने वाले कथित भगवाधारी अपने आलिशान बंगलों ,महलों ,में मौज कर रहे थे ,
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