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हरिद्वार में बीते 3 दशकों में 22 संतों की हत्या तक हो चुकी है, औऱ कई आज तक लापता चल रहे हैं.

हरिद्वार में बीते 3 दशकों में 22 संत इन साजिशों का शिकार हुए हैं. संतों की हत्या तक हो चुकी है, औऱ कई आज तक लापता चल रहे हैं. वहीं, पुलिस अधिकारियों के मुताबिक हालांकि अभी कई मामलों को नहीं सुलझा पाई है. कई आश्रमों की संपत्ति और गद्दी के विवाद थानों से लेकर कोर्ट तक चल रहे है. ऐसे में पुलिस भी इन मामलों में हाथ डालने से बचती नजर आती है.

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अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि (Narendra Giri) की प्रयागराज बाघंबरी मठ में संदिग्ध हालत में मौत और उनके शिष्य संत आनंद गिरि (Anand Giri) की हरिद्वार (Haridwar) से गिरफ्तारी के बाद हरिद्वार एक बार फिर खबरों में छा गया है. वहीं, महंत की मौत का रहस्य भी संपत्ति के विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है. धर्मनगरी में मठ-मंदिर-महंत, आश्रम और अखाड़ों की गद्दी और संपत्ति के विवाद सबकी जानकारी में है. अकूत संपत्ति और साजिशों में लगभग 3 दशकों में कई संत अपनी जान गंवा चुके हैं और कई आज तक लापता हैं.

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दरअसल, धर्मनगरी हरिद्वार में मठ-मंदिर, आश्रम और अखाड़ों के पास अकूत धन संपत्ति है. ऐसे में ज्यादातर तो संस्थाओं को संपत्ति दान में मिली है. वहीं, आज भी सांसारिक और पारिवारिक मोह माया से दूर रहने का उपदेश देने वाले कई संत और महंत इनके चक्करों में पड़े हुए हैं. साथ ही आलीशान आश्रमों में रहते हैं. जहां कई संत तो करोड़ों रुपए की महंगी और लग्जरी गाड़ियों के शौकीन है. भगवा वस्त्र पहनते जरूर हैं, लेकिन संतों का रहन-सहन किसी राजशाही से कम नहीं है.
संतों के संपत्ति विवाद में पुलिस भी हाथ डालने से बचती
गौरतलब है कि कई संत लग्जरी लाइफ जीते हैं. सबसे ऊंचे स्थान पर बैठने से लेकर खर्चों की पूर्ति के लिए संस्था की संपत्ति को खुर्दबुर्द करने के षड्यंत्र रचे जाते हैं. हरिद्वार में बीते 3 दशकों में 22 संत इन साजिशों का शिकार हुए हैं. संतों की हत्या तक हो चुकी है, औऱ कई आज तक लापता चल रहे हैं. वहीं, पुलिस अधिकारियों के मुताबिक हालांकि अभी कई मामलों को नहीं सुलझा पाई है. कई आश्रमों की संपत्ति और गद्दी के विवाद थानों से लेकर कोर्ट तक चल रहे है. ऐसे में पुलिस भी इन मामलों में हाथ डालने से बचती नजर आती है.

बीते 3 दशकों में 22 साधु संत हुए गहरी साजिशों का शिकार
बता दें कि धर्मनगरी हरिद्वार ज्यादातर संत और महंतों के खून से लाल होती आई है. वहीं, बीते 25 अक्तूबर 1991 को रामायण सत्संग भवन के संत राघवाचार्य को कुछ अज्ञात स्कूटर सवार लोगों ने गोली मार दी थी. इस दौरान वह आश्रम से बाहर निकलकर टहल रहे थे. 9 दिसंबर 1993 को रामायण सत्संग भवन के ही संत रंगाचार्य की ज्वालापुर में हत्या हो गई. इसके अलावा 1 फरवरी 2000 को मोक्षधाम ट्रस्ट से जुड़े रमेश को किसी अज्ञात जीप सवार ने पीछे से टक्कर मार दी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई. इस दौरान चेतनदास कुटिया में अमेरिकी साध्वी प्रेमानंद की दिसंबर 2000 में हत्या हो गई थी. बीते 5 अप्रैल 2001 को बाबा सुतेंद्र बंगाली की भी हत्या हुई थी.

गौरतलब है कि 6 जून 2001 को हरिद्वार में हरकी पैड़ी के पास बाबा विष्णुगिरि समेत 4 साधुओं की हत्या हुई थी. वहीं, 26 जून 2001 को बाबा ब्रह्मानंद की भी हत्या हो गई. साल 2001 को पानप देव कुटिया के बाबा ब्रह्मदास को अज्ञात बदमाशों ने दिनदहाड़े गोली मार दी. ऐसे में 17 अगस्त 2002 बाबा हरियानंद और शिष्य की हत्या हो गई. ऐसे में इस साल महंत नरेंद्र दास की हत्या की गई. इसके अलावा 6 अगस्त 2003 को संगमपुरी आश्रम के संत प्रेमानंद अचानक आश्रम से लापता हो गए. 28 दिसंबर 2004 को संत योगानंद की भी हत्या हो गई.

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अकूत संपत्ति विवाद के चलते कई संतों की हुई हत्या
बता दें कि बीते 15 मई 2006 को पीली कोठी के स्वामी अमृतानंद की हत्या हो गई थी. साथ ही 25 नवंबर 2006 को बाल स्वामी की कुछ लोगों ने गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था. जुलाई 2007 में स्वामी शंकर देव अचानक आश्रम से लापता हो गए थे. आज तक पुलिस उनको तलाश नहीं पाई है. वहीं, 8 फरवरी 2008 को निरंजनी अखाड़े के सात साधुओं को जहर देकर मौत के घाट उतार दिया गया. 14 अप्रैल 2012 निर्वाणी अखाड़े के महंत सुधीर गिरि की हत्या हो गई थी. इसी बीच बीते 26 जून 2012 को लक्सर के हनुमान मंदिर में तीन संतों की हत्या हुई.

पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि इसकी एक वजह ये भी है कि पार्टी के कई मुद्दों को लेकर जनता में असंतोष है. 2022 में पंजाब, मणिपुर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. एक बीजेपी कार्यकर्ता ने बताया कि विधायकों को पिछले पांच सालों के दौरान अपने द्वारा किए गए कार्यों का एक रिपोर्ट कार्ड जमा करने के लिए भी कहा गया था. जिसमें बड़ी संख्या में विधायकों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है. पार्टी ने कहा है कि जिन विधायकों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है, उन्हें हटा दिया जाएगा और आगे नहीं ले जाया जाएगा.
विधायकों (Legislators) के प्रदर्शन का मूल्यांकन कई पैरामीटर्स के आधार पर किया गया, जिसमें- (1) स्थानीय लोगों के विकास के लिए दिए गए फंड का कैसे इस्तेमाल किया गया? (2) हाशिए पर पड़े लोगों को सशक्त बनाने के लिए कौन-कौन से प्रोजेक्ट लाए गए, उनसे लोगों को कितना फायदा मिला? (3) सेवा ही संगठन कार्यक्रम में विधायकों का योगदान क्या रहा? आदि शामिल हैं. उन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया गया जहां सरकार के प्रदर्शन पर लोगों की प्रतिक्रिया मांगी गई थी.

 

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