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कृषि क़ानूनों के विरोध के दौरान जान गंवाने वाले किसानों का कोई रिकॉर्ड नहीं: केंद्र सरकार

कृषि क़ानूनों के विरोध के दौरान जान गंवाने वाले किसानों का कोई रिकॉर्ड नहीं: केंद्र सरकार
नई दिल्ली()केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ वर्ष 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों का सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को संसद को यह जानकारी दी.तोमर ने यह भी कहा कि सरकार ने तीन कृषि कानूनों के बारे में किसानों के मन में आशंकाओं का पता लगाने के लिए कोई अध्ययन नहीं कराया है.

गौरतलब है कि बीते मई महीने में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा दिए गए बयान के मुताबिक, तब तक किसान आंदोलन में विभिन्न कारणों से 470 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी थी.इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पंजाब सरकार ने राज्य के किसानों और खेत मजदूरों की 220 मौतों की पुष्टि की है और 10.86 करोड़ रुपये का मुआवजा भी दिया है.
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, सबसे ज्यादा किसानों/खेत मजदूरों की मौत संगरूर जिले में हुई है, जहां पिछले आठ महीनों में ऐसी 43 मौतें हुई हैं. सरकार ने प्रत्येक मामले में 5 लाख रुपये मुआवजे की मंजूरी दी है. जिले में ऐसे परिवारों को कुल 2.13 करोड़ रुपये पहले ही दिए जा चुके हैं.

No record of farmers who lost their lives during protest against agricultural laws: Central Government

इस तरह की मौतों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या बठिंडा जिले से सामने आई जहां 33 ऐसी मौतें हुईं और सरकार ने इन मृतक किसानों के परिजनों को कुल 1.65 करोड़ रुपये मंजूर किए.इसके अलावा मोगा में 27, पटियाला में 25, बरनाला में 17, मानसा में 15, मुक्तसर साहिब में 14, लुधियाना में 13 मौतों की पुष्टि हुई है.फाजिल्का, फिरोजपुर और गुरदासपुर में क्रमश: सात, छह और पांच लोगों की मौत हुई है, जबकि अमृतसर और नवांशहर में चार-चार मौतें हुई हैं. मोहाली और तरणतारण में क्रमशः तीन और दो मौतें हुईं, जालंधर और कपूरथला में एक-एक मौत दर्ज की गई.
किसान संगठन भी अपने स्तर पर ऐसी मौतों का विवरण एकत्र कर रही हैं और उनके अनुसार अब तक दिल्ली में विरोध प्रदर्शन के दौरान 500 से अधिक किसान/खेत मजदूर मारे गए हैं, जिनमें से लगभग 85 प्रतिशत केवल पंजाब के हैं.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में आठ महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
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