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राजनीति

आठ लाख मतदाताओं ने ‘नोटा’ का विकल्प चुना

पांच राज्यों में क़रीब आठ लाख मतदाताओं ने ‘नोटा’ का विकल्प चुना

( भाषा )

नई दिल्ली/मुंबई: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले करीब आठ लाख मतदाताओं ने ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (None of The Above) अथवा ‘नोटा’ का विकल्प चुना.

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चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों में यह जानकारी सामने आई है.

मणिपुर में कुल मतदाताओं में से 10,349 (0.6 प्रतिशत) ने नोटा विकल्प का इस्तेमाल किया. इसी तरह गोवा में 10,629 मतदाताओं (1.1 फीसदी) ने इस विकल्प का इस्तेमाल किया.
राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले उत्तर प्रदेश, ज​हां सबसे अधिक 403 विधानसभा सीटें हैं, वहां 621,186 मतदाताओं (0.7 प्रतिशत) ने ईवीएम में ‘नोटा’ विकल्प का बटन दबाया.

उत्तराखंड में ‘नोटा’ का बटन दबाने वालों की संख्या 46,830 (0.9 फीसदी) रही. वहीं, पंजाब में 1,10,308 मतदाता (0.9 प्रतिशत) ने नोटा का विकल्प चुना.

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कुल मिलाकर पांच राज्यों में 7,99,302 मतदाताओं ने इस विकल्प को चुना.

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर ‘नोटा’ विकल्प 2013 में पेश किया गया था. इसका अपना प्रतीक है- एक मतपत्र जिसके चारों ओर एक काला क्रॉस बना होता है.

सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने वोटिंग पैनल पर अंतिम विकल्प के रूप में ईवीएम पर नोटा बटन जोड़ा था.

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शीर्ष अदालत के आदेश से पहले जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट देने के इच्छुक नहीं थे, उनके पास चुनाव आचरण नियम, 1961 के नियम 49-ओ (मतदान न करने का निर्णय लेने वाले) के तहत अपना निर्णय दर्ज करने का विकल्प था, लेकिन इस विकल्प में मतदाता की गोपनीयता बरकरार नहीं रह पाती थी.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नए सिरे से चुनाव कराने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था, यदि अधिकांश मतदाता मतदान के दौरान नोटा विकल्प का प्रयोग करते हैं.
शिवसेना को गोवा, यूपी व मणिपुर में नोटा से भी कम वोट मिले
दूसरी ओर शिवसेना को गोवा, उत्तर प्रदेश और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में नोटा से भी कम वोट मिले हैं. निर्वाचन आयोग के आंकड़ों से यह जानकारी मिली है.

महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रही शिवसेना को तीन राज्यों में एक भी सीट नसीब नहीं हुई है.

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गोवा में शिवसेना ने 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और सभी की जमानत जब्त हो गई है.

शिवसेना को गोवा की चार सीटों पर 100 से भी कम वोट मिले हैं. गोवा में ‘उक्त में से कोई नहीं’ (नोटा) को 1.12 फीसदी मत मिले, जबकि शिवसेना को 0.18 प्रतिशत वोट ही मिल सके.

इसी तरह मणिपुर में शिवसेना ने छह सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे जहां नोटा को 0.54 प्रतिशत तो शिवसेना को महज 0.34 फीसदी ही वोट मिले.

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उत्तर प्रदेश में शिवसेना को बृहस्पतिवार को 0.03 फीसदी मत हासिल हुए जबकि नोटा को 0.69 प्रतिशत वोट पड़े
गोवा, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में शिवसेना के खराब प्रदर्शन पर पार्टी के मुख्य प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि उनकी पार्टी को नोटा विकल्प से भी कम वोट मिले, क्योंकि उसके पास उपयोग के लिए भाजपा जितना पैसा नहीं था.

शिवसेना सांसद ने कहा, ‘फिर भी हम गोवा और उत्तर प्रदेश में लड़े. हमारी लड़ाई जारी रहेगी. जीत या हार अंत नहीं होता है. यह शुरुआत है. हम काम करना जारी रखेंगे.’

पार्टी ने प्रचार के लिए महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे समेत कई नेताओं को उतारा था. आदित्य ठाकरे ने गोवा और उत्तर प्रदेश में प्रचार किया था. राउत ने भी गोवा में पार्टी के लिए वोट मांगे थे.

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आदित्य ठाकरे ने बृहस्पतिवार को कहा कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों का असर राज्य की महाविकास आघाडी (एमवीए) सरकार पर नहीं पड़ेगा और यह पहले की तरह ही स्थिर रहेगी.

जिन राज्यों में शिवसेना ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, वहां पार्टी के खराब प्रदर्शन की परवाह नहीं करते हुए आदित्य ने कहा कि यह महाराष्ट्र स्थित पार्टी के चुनावी सफर की शुरुआत भर है.

पार्टी महाराष्ट्र के पड़ोसी राज्य गोवा में कोई असर दिखाने में नाकाम रही जहां अच्छी संख्या में मराठी भाषी लोग रहते हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन सरकार में शामिल शिवसेना ने तीन राज्यों में अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन वह एक सीट भी नहीं जीत पाई.

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आदित्य ठाकरे ने कहा कि शिवसेना अपने संगठनात्मक आधार का विस्तार करने के लिए ग्राम पंचायत स्तर से संसद तक चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा, ‘यह केवल एक शुरुआत है और शिवसेना एक दिन अवश्य जीतेगी.’

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